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________________ विशेषाव ० कोट्याचार्य वृत्तौ ॥५५६॥ तं मन्नसि जइ बन्धो जोगो जीवस्स कम्मुणा समयं । पुव्वं पच्छा जीवो कम्मं व समं च ते होला ? ॥२२८४ ॥ न हि पुत्रवमओ खरसिंग वाऽऽयसंभवो जुत्तो । निक्कारणजायस्स य निक्कारणउच्चिय विणासो ॥ २२८५ ॥ अहवाsणाइच्चिय सो निकारणओ न कम्मजोगो से । अह : निक्कारणओ सो मुक्कस्सऽवि होहिइ स भुज्जो ॥२२८६ ॥ होज व स निच्चमुक्को बन्धाभावम्मि को व से मोक्खो ?। नहि मुक्कव्ववएसो बन्धाभावे मओ नभसो ॥२२८७॥ नय कम्मस्सवि पुत्र्वं कत्तुरभावे समुन्भवो जुत्तो । निकारणओ सोऽवि य तह जुगवुष्पत्तिभावे य ॥२२८८॥ नहि कत्ता कज्जन्ति य जुगवुप्पत्तीऍ जीवकम्माणं । जुन्तो ववएसोऽयं जह लोए गोविसाणाणं ॥ २२८९ ॥ होarsणाईओ वा संबन्धो तहवि न घडए मोक्खो । जोडणाई सोडणंतो जीवनहाणं व संबन्धो ॥२२९० ॥ इय जुत्तीए न घडइ सुव्वइ य सुईऍ बन्धमोक्स्खोति । तेण तुह संसओऽयं न य कज्जोऽयं जहा सुणसु ॥ २२९१ ॥ संताणोऽणाईओ परोप्परं हेउहेउ भावाओ । देहस्स य कम्मरस य मंडिय ! बीयंकुराणं व ॥२२९२ ॥ अत्थि स देहो जो कम्मकारणं जो य कजमण्णस्स । कम्मं च देहकारणमत्थि य जं कज्जमण्णस्स ॥ २२९३॥ कत्ता जीवो कम्मस्स करणओ जह घडस्स घडकारो । एवं चिय देहस्सवि कम्मकरणसंभवाउति ॥२२९४ ॥ कम्मं करणमसिद्धं च ते मई कज्जओ तयं सिद्धं । किरियाफलओ य पुणो पडिवज्ज तमग्गिभूइ व्व ॥ २२९५ ॥ जं संताणोऽणाई तेणाणतोऽवि णायमेगन्तो । दीसह संतोऽवि जओ कत्थइ बीयंकुराईणं ॥ २२९६ ॥ अण्णयरमणिव्वत्तियकज्जं बीयंकुराण जं विहयं । तत्थ हओ संताणो कुक्कुडि-अंडाइयाणं व ॥२२९७॥ जीवकर्मगोरनादित्वं ॥५५६॥
SR No.600321
Book TitleVisheshavashyak Bhashyam Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinbhadra Gani Kshamashraman
PublisherRushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha
Publication Year1937
Total Pages496
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size40 MB
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