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विशेषावक कोट्याचार्य
वृत्ती
॥९३५॥
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कीरइ कयमकयं वा कयाकयं वेह कन्जमाणं वा । कजमिह विवक्खाए न कीरए सव्वहा किंचि ॥४११४॥
| भावकरणे रूवित्ति कीरइ कओ कुभो संठाणसत्तिओ अकओ। दोहिवि कयाकओ सो तम्समयं कन्जमाणोत्ति॥४११॥
२४ कृताकृतादि पुब्बकओ उ घडतया परपज्जाएहिं तदुभएहिं च । कज्जतो य पडतया न कीरए सव्वहा कुंभो ॥४११६॥
विचारः वोमाइ निच्चयाओ न कीरई दव्वयाइ वा सव्वं । कीरइ य कन्जमाणं समए सव्वं सपज्जयओ॥४११७॥
॥९३॥ उप्पायट्टिइभंगस्स भावओ इय कयाकयं सव्वं । सामाइयंपि एवं उप्पायाईसहावंति ॥४११८॥ दब्वमणत्यंतरपज्जायंतरविसेसणेहिं जुज्जेज । उप्पायाइसहावं न उ सामइयं गुणो जम्हा ॥४११९॥ सो उप्पण्णो उप्पण्ण एव विगओ य विगय एवेह । किं सेसमस्स जेणिह कयाकयादेसया होज्जा ? ॥४१२०॥ जंचिय दवाणन्नो पज्जाओतं च तिविहसम्भावं। तोसोऽवि तिरूवो चिय तत्तो य कयाकयसहावो॥४१२१॥ जह वा रूवंतरओ विगमुप्पाएवि रूवसामण्णं । निच्चं कयाकयमओ रूवं परपज्जयाओ वा।।४१२२॥ तह परिणामंतरओ वयविभवेवि परिणामसामण्णं | निच्चं कयाकयमओसामइयं परगुणाओवा॥४१२३॥ दवाइचउक्कं वा पडुच्च कयमकयमहव सामइयं । एगपुरिसाइओ कयमकयं नाणानराईहिं ॥४१२४॥ केण कयंतिय ववहारओ जिणिदेहिं गणहरेहिं च । तस्सामिणा उ निच्छयनयस्स तत्तोजओऽणनं ॥४१२५॥ नणु निग्गमे गयं चिय केण कयं तंति का पुणो पुच्छा ?। भण्णइ स बज्झकत्ता इहंतरंगो विसेसोऽयं ॥४१२६॥ अहवा सततकत्ता तत्थेह पउज्जकारगोऽभिमओ। अहवेह सव्वकारगपरिणामाणन्नरूवोत्ति ॥४१२७॥