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________________ विशेषाव० कोव्याचार्य ॥८७४॥ नणु सनिहणत्तमेवं मिच्छावरणक्खओत्ति व जिणस्स । इयरेयरावरणया अहवा निकारणावरणं ॥३७४२॥ युगपदुपयोएगयराणुवउत्ते तदसव्वन्नुदरिसणत्तणं न तं च । भण्णइ छउमत्थस्सवि समाणमेगंतरे सव्वं ॥३७४३॥ ★ गनिरास: सव्वक्खीणावरणो अह मन्नसि केवली न छउमत्थो। उभओवओगविग्यो तो छउमत्थस्स न जिणस्स ॥३७४४॥ देसक्खए अजुत्तं जुगवं कसिणोभओवओगित्तं । देसोभओवओगो पुणाइ पडिसिज्झए कि से॥३७४५॥ ॥८७४॥ अह जम्मि नोवउत्तोतं नत्थितओन दंसणाइतिगे। अत्थि जुगवोचओगोत्ति होउ साहकहं विगलो? ॥३७४६॥ ठिइकालविसंवाओ नाणाणं नवि यते चउन्नाणी। एवं सइ छउमत्थो अत्थि न यतिदसणी समए॥३७४७॥ आह भणियं नणु सुए केवलिणो केवलोवओगेण । पढमत्ति तेण गम्मइ सओवओगोभयं तेसिं ॥३७४८॥ उवओगग्गहणाओ इह केवलनाणदसणग्गहणं । जइ तदणत्यंतरया हवेज सुत्तम्मि को दोसो?॥३७४९॥ तग्गहणे किमिह फलं नणु तदणत्यंतरोवएसत्थं । तह वत्थुविसेसत्थं सयसो सुत्ताई समयम्मि ॥३७५०॥ सिद्धाकाइयनोसंजयाइपजायओ स एवेगो। सुत्तेसु विसेसिजइ जहेह तह सव्ववत्थूणि ॥३७५१॥ भणियपि य पन्नत्तीपन्नवणाईसुजइ जिणो समयं । जं जाणइ नवि पासइतं अणुरयणप्पभाईणि॥३७५२।।द इवसहमतुप्पञ्चयलोवा तं ति केइ छउमत्थो । अन्ने पुण परतित्थियवत्तव्वमिणंति जंपंति ॥३७५३॥ जं छउमत्थोऽहोहियपरमावहिणो विसेसिङ कमसो। निहिसइ केवली तेण तस्स छउमत्थया नत्थि ॥३७५४॥ न य पासइ अणुमन्नो छउमत्थो मोत्तुमोहिसंपन्नं । तत्थवि जो परमावहिनाणी तत्तो य किंचूणो॥३७५५॥
SR No.600321
Book TitleVisheshavashyak Bhashyam Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinbhadra Gani Kshamashraman
PublisherRushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha
Publication Year1937
Total Pages496
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size40 MB
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