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________________ विशेषाव० कोट्याचार्य वृत्ती ॥८७३॥ BREAXXSALALACES किं पुण जा संपत्ती सा जोगस्सेव ण उ अजोगस्स । तह जो मोक्खो नियमा सो भव्वाणं न इयरेसिं ॥३७२८॥ युगपदुपयोसव्वाओ लद्धीओ जं सागारोवओगलाभाओ। तेणेह सिद्धिलद्धी उप्पजइ तदुवउत्तस्स ॥३७२९॥ ४ागनिरास: एवं च गम्मइ धुवं तरतमजोगोवओगया तस्स । जुगवोवओगभावे सागारविसेसणमजुत्तं ॥३७३०॥ अहव मई सव्वं चिय सागारं से तओ अदोसोत्ति । नाणंति दसणंति व न विसेसोतंच नोजम्हा॥३७३१॥ ॥८७३॥ सागारमणागारं लक्षणमेयंति भणियमिह चेव । तह नाणदंसणाई वीसुं समए पसिद्धाइं ॥३७३२॥ पत्तेयावरणत्तं इहरा बारसविहोवओगो य । नाणं पंचविकप्पं चउन्विहं दसणं कत्तो? ॥३७३३।। भणियमिहेव य केवलनाणुवउत्ता मुणंति सव्वंति । पासंति सव्वउत्ति य केवलदिट्ठीहिऽणंताहिं ॥३७३४॥ आहपिहन्भावम्मिवि उवउत्ता सणे य णाणे य । भणियं तो जुगवं सो नणु जं भणियंपितं सुणसु॥३७३५॥ नाणम्मि सम्मि य एत्तो एगतरयम्मि उवउत्ता। सव्वस्स केवलिस्सवि जुगवं दो नत्थि उवओगा ॥३७३६॥ अह सव्वस्सेव न केवलिस्सदोकिंतु कस्सह हवेज । सोय जिणो सिद्धो वा तं च न सिद्धाहिगाराओ॥३७३७॥ अहवा पुव्वद्धेणेव सिद्धमिक्कोत्ति किंथ बिइएण। एत्तो चिय पच्छद्धेऽवि गम्मए सव्वपडिसेहो ॥३७३८॥ तो कहमिहेव भणियं उवउत्ता दसणेय नाणे य? । समुदायवयणमेयं उभयनिसेहो य पत्तेयं ॥३७३९॥ जमपज्जंताई केवलाई तेणोभओवओगोत्ति । भण्णइ नायं नियमो संतं तेणोवओगोत्ति ॥३७४०॥ नियठिइकालं जह सेसदसणनाणाणमणुवओगेवि। दिट्ठमवत्थाणं तह न होइ कि केवलाणंपि॥३७४१।। HABARG
SR No.600321
Book TitleVisheshavashyak Bhashyam Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinbhadra Gani Kshamashraman
PublisherRushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha
Publication Year1937
Total Pages496
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size40 MB
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