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________________ बोटिकनिरास: एव५५ ॥७३४॥ तीए पुणोऽवि बद्धोरसेगवत्था पुणोऽवि छड़िती। अच्छउ ते तेणं चिय समणुण्णाया धरेसीय ॥३११०॥ विशेषाव० कोट्याचार्य ___ कोडिन्नकोदवीरे पव्वावेसी य दोणि सो सीसे। तत्तो परंपराफासओऽवसेसा समुप्पन्ना ॥३१११॥ वृत्तौ एवं एए भणिया ओसप्पिणीए उ निण्हगा सत्त । वीरवरस्स पवयणे सेसाणं पवयणे नत्थि ॥३११२॥ द्र 'छ' इत्यादि, स्पष्टा । कथम् ?-रहवीरपुर नगरं, तत्थ दीवगमुजाणं, तत्थ अन्जकण्हा नामायरिया समोसढा, तत्थ य एगो ७३४॥ | साहस्सियमल्लो सिवभूती नाम, तस्स भब्जा गोविणी नाम, सा सिवभूतिमायरं वड्डेइ, जहा-तुज्झ पुत्तो दिवसे २ कआइ अड्डरते कएइ, अहं दुक्खेहिं जग्गामि, भुक्खिया य अच्छामि, तीए भणिय-दारं देजाहि, अहमज्ज जग्गामि, तो सा पसुत्ता, इयग जग्गइत्ति, ४ इयरोऽवि अड्डरत्ते आगओ, बारं मग्गइ, मायाए अम्बाडिओ-आ पाव ! जत्थ एइए बेलाए उग्घाडियाणि बाराणि तत्थ वच्चाहि, निग्गओ, है मग्गन्तेण साहुपडिस्सओ उग्याडिओ दिट्ठो, सो तत्थ वंदित्ता भणइ-पव्यावेह ममं, ते ण इच्छन्ति, ताहे णेण सय चेव लोओ कओ, | ततो से लिंगमवि दिण्णं, ते विहरिऊण पुणो तत्थेव आगया, रन्नो य सगासं सो गओ, तेण से पुव्वपरिचयाओ कंबलरयणं दिण्णं, आयरिएण य निब्भत्थिओ-न कप्पइ जईणमेयं, ण य पडिसिद्धो (ऽवि ठिओ), ततो तस्स तं परोक्खं फाडिऊग य श्यहरणनिसेज्जाओ क याओ, तस्सवि आगयस्सेगा दिण्णा, तं दट्टण फाडियं, सो कसाइओ चिट्ठइ । अन्नया जिगकप्पिया वन्निज्जति, तंजहा-"जिणकप्पिPI या य दुविहा पाणिप्पाया पडिग्गहधरा य । पाउरणमपाउरणा एक्केक्का ते भवे दुविहा ॥१॥ दुगतिगचउक्कपणगं णव दस एक्का8| रसेव बारसगं । एए अट्ठ वियप्पा जिणकप्पे हुंति उवहिस्स ॥२॥" केसिं च दुविहो उवही-रयहरणं मुहपोत्तिया य, अन्नेसिं तिविहो| कप्पो ततिओ, चउबिहे दो कप्पा, पंचविहे तिण्णि, णवविहे रयहरणमुहपोत्तियाओ, तहा-"पत्तं पत्ताबंधो, पायट्ठवणं च पादकेसरिया। SORRENCO4%A4-%AR
SR No.600321
Book TitleVisheshavashyak Bhashyam Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinbhadra Gani Kshamashraman
PublisherRushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha
Publication Year1937
Total Pages496
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size40 MB
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