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________________ विशेषाव कोव्याचार्य बोटिकनिरास: ॥७३३॥ ॥७३३॥ CROEC%ACREASSASE जइ चेलभोगमेत्तादजिआचेलयपरीसहो तेण । अजियदिगिंछाइपरीसहोवि भत्ताइभोगाओ ॥३०९६॥ एवं तुह न जियपरीसहा जिणिंदावि सब्बहाऽऽवन्न । अहवा जो भत्ताइसु स विही चेलेऽवि किं नेट्ठो१३०९७/जह भत्ताइ विसुद्धं रागहोसरहिओ निसेवेतो। विजियदिगिंछाइपरीसहो मुणी सपडियारोऽवि ॥३०९८॥ तह चेलं परिसुद्धं रागद्दोसरहिओ सुयविहीए। होइ जियाचेलपरीसहो मुणी सेवमाणोऽवि ॥३०९९॥ है सदसंतचेलओऽचेलगो य ज लोगसमयसंसिद्धो। तेणाचेला मुणओ संतेहिं जिणा असंतेहिं ॥३१००॥ परिसुद्धजुण्णकुच्छियथोवानिययनभोगभोगेहिं । मुणओ मुच्छारहिया संतेहिं अचेलया होंति ॥३१०१॥ जह जलमवगाहंतो बहुचेलोऽवि सिरवेढियकडिल्लो। भण्णइ नरो अचेलो तह मुणओ संतचेलावि ॥३१०२॥ तह थोवजुन्नकुच्छियचेलेहिवि भन्नए अचेलोत्ति । जह तूर सालिय! लहं दे पोति नग्गिया मोत्ति ॥३१०३॥ विहिय सुए च्चिय जओ धरेज तिहिं कारणेहिं वत्थंति। तेणं चिय तदवस्सं निरतिसएणं धरेयव्वं ॥३१०४॥ जिणकप्पाजोग्गाणं हीकुच्छपरीसहा जओऽवस्सं । ही लज्जत्ति व सो संजमो तदत्थं विसेसेणं ॥३१०५॥ जइ जिणमयं पमाणं तुह तो मा मुयसु वत्थपत्ताई। पुवुत्तदोसजालं लन्भिसिमा समिइघायं च ॥३१०६॥ अणुपालेउमसत्तोऽसत्तो न समत्तमेसणासमिइं । बत्थरहिओन समिओ निक्खेवादाणवोसग्गे ॥३१०७॥ इय पण्णविओवि बहुं सो मिच्छत्तोदयाकुलियभावो। जिणमयमसद्दहंतो छड्डियवत्थो समुजाओ॥३१०८॥ तस्स भगिणी समुज्झियवत्था तह चेव तदणुरागेणं। संपत्थिया नियत्था तो गणियाए पुणो मुयइ ॥३१०९॥ X
SR No.600321
Book TitleVisheshavashyak Bhashyam Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinbhadra Gani Kshamashraman
PublisherRushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha
Publication Year1937
Total Pages496
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size40 MB
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