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________________ विशेषाव ० कोट्याचार्य वृत्तौ ॥७३२॥ अपरिग्गहया सुत्तेत्ति जा य मुच्छा परिग्गहोऽभिमओ । सव्वद्दव्वेसु न सा कायव्वा सुत्तसन्भावो ॥ ३०८२ ॥ निरुवमधिइसंघयणा चउनाणाइसयसत्तसंपण्णा । अच्छिद्दपाणिपत्ता जिणा जियपरीसहा सब्वे ॥ ३०८३ ॥ तम्हा जहुत्तदोसे पार्वति न वत्थपत्तरहियावि । तदसाहणंति तेसिं तो तग्गहणं न कुव्वंति ॥ ३०८४॥ तहवि गहिएगवत्था सवत्थतित्थोवएसणत्थंति । अभिनिक्वमंति सच्वे तम्मि चुएऽचेलया हुंत्ति ||३०८५ || जिणकप्पियादओ पुण सोवहिणी सव्वकालमेगंतो । उवगरणमाण मेसिं पुरिसावेक्खाऍ बहुभेयं ॥३०८६॥ अरहंता जमचेला तेणाचेलत्तणं जइ मयं ते । तो तव्वयणाउच्चिय निरतिसओ होहि माचेलो ॥३०८७|| रोगी जहोवएस करेइ वेजस्स होअरोगो यः । नय वेसं चरियं वा करेइ न य पउणइ करेंतो ॥ ३०८८|| तह जिणवेज्जाएसं कुणमाणोऽवेइ कम्मरोगाओ। नउ तन्नेवत्थधरो तेसिमाएसमकरेंतो ||३०८९|| न परोवसवसया न य छउमत्था परोवएसंपिं । देति न य सीसवगं दिक्खेंति जिणा जहा सव्वे ॥ ३०९० ॥ तह सेसेहिवि सव्वं कज्जं जइ तेहिं सव्वसाहम्मं । एवं च कओ तित्थं १ न चेदचेलोत्ति को गाहो ? ।। ३०९१ ।। जह न जिणिदेहिं समं सेसाइसएहिं सव्वसाहम्मं । तह लिंगेणाभिमयं चरिएणवि किंचिसाहम्मं ॥ ३०९२ ॥ उत्तमसिंघणा पुव्वविदोऽतिसइणो सया कालं । जिनकप्पियावि कप्पं कयपरिकम्मा पवजंति ॥ ३०९३ ||| तं जड़ जिणवयणाओ पवज्जसि पवज्ज तो स छिन्नोति । अत्थित्ति किह पमाणं ? किह वोच्छिन्नोत्ति न पमाग १ ॥ मण परमोहि पुलाए आहारग स्ववम उवसमे कप्पे । संज्ञमतिय केवल सिज्झणा य जंबूम्मि वोच्छिण्णा ॥ बोटिक - निरासः ॥७३२॥
SR No.600321
Book TitleVisheshavashyak Bhashyam Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinbhadra Gani Kshamashraman
PublisherRushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha
Publication Year1937
Total Pages496
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size40 MB
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