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________________ विशेषाव कोट्याचार्य वृत्तौ ॥७१२॥ CAREERANGOLX नयरासिभेयमिच्छइ तुमं व नोजीवमिच्छमाणोऽवि। अन्नोऽवि नओ नेच्छइ जीवाजीवाहियं किंचि ॥२९७८॥ पंचमो इच्छउ व समभिरूढो देसं नोजीवमेगनइयं तु । मिच्छत्तं सम्मत्तं सव्वनयमयावरोहेणं ॥२९७९।। निहवः तं जइ सम्वनयमयं जिणमयमिच्छसि पवज दोरासिं। पयविप्पडिवत्तीयवि मिच्छत्तं किं नु रासीसु॥२९८०॥ एवंपि भण्णमाणो न पवजइ सो जओ तओ गुरुणा। चिंतियमयं पणट्ठो नासिहिई मा बहुं लोगं ॥२९८१२॥ १०॥ 8 ॥७१२॥ तो णं रायसभाए निग्गिण्हामि बहुलोगपचक्खं । बहुजणनाओऽवसिओ होहीअग्गेज्झपक्वोत्ति ॥२९८२।। तो बलसिरिनिवपुरओ वायं नाओवणीवमग्गाणं । कुणमाणाणमईया सीसाऽऽयरियाण छम्मासा ॥२९८३॥ एकोऽवि नावसिज्जइ जाहे तो भणइ नरवई नाहं । सत्तो सोउं सीयंति रजकजाणि मे भगवं? ॥२९८४॥ गुरुणाभिहिओ भवओ सुणावणथमियमेत्तियं भणियं। जइसिन सत्तोसोउं तो निग्गिण्हामिणं कल्लं ।।२९८५॥ वितियदिणे बेइ गुरू नरिंद ! जं मेइणीऍ संभूयं । तं कुत्तियावणे सव्वमत्थि सव्वप्पतीयमियं ॥२९८६॥ तं कुत्तियावणसुरो नोजीवं देइ जइ न सो नत्थि। अह भणइ नत्थि तो नत्थि कित्थ हेउप्पबंधेणं ?॥२९८७॥ तं मगिजउ मोल्लेण सव्ववत्थूणि किं त्थ कालेण?। इय होउत्ति पवणे नरिंदपइवाइपरिसाहिं ॥२९८८॥ सिरिगुत्तेण छलूगो छम्मास विकड्डिऊण वाऍ जिओ। आहरणकुत्तिआवण चोयालसरण पुच्छाणं ॥२९८९॥ भूजलजलणानिलनहकालदिसाऽऽया मणो य दब्वाइं। मण्णंति नवेयाई सत्तरस गुणा इमे अण्णे ॥२९९०॥ रूवरसगंधफासा संखा परिमाणमह पुहुत्तं च । संजोगविभागपरापरत्तबुद्धी सुहं दुक्खं ॥२९९१॥
SR No.600321
Book TitleVisheshavashyak Bhashyam Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinbhadra Gani Kshamashraman
PublisherRushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha
Publication Year1937
Total Pages496
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size40 MB
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