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________________ विशेषाव कोट्याचार्य पठो निहवः ॥७११॥ ॥७११॥ ARRRRR- 52 गिहकोलियाइपुच्छे छिन्नेऽवि तदंतरालसंबंधो । सुत्तेभिहिओ सुहमामुत्तत्तणओ तदग्गहणं ॥२९६४॥ गज्झा मुत्तिगयाओ नागासे जहा पईवरस्सीओ। तह जीवलक्षणाई देहे न तदंतरालम्मि ॥२९६५॥ देहरहियं न गेण्हइ निरतिसओ नातिसुहुमदेहं च । न य से होइ विबाहा जीवस्स भवंतराले व्व ।।२९६६॥ दव्वामुत्तत्ताकयभावादविकारदरिसणाओ य । अविणासकारणाहि य नभसो वन खंडसो नासो॥२९६७॥ नासे य सव्वनासो जीवनासे य जिणमयच्चाओ। तत्तो य अणिम्मोक्खो दिक्खावेफल्लदोसाय ॥२९६८॥ अह खंधो इव संघायभेयधम्मा सतोऽवि सव्वेसिं। अवरोप्परसंकरतो मुहाइगुणसंकरो पत्तो ॥२९६९॥ अह अविमुक्कोऽवि तओ नोजीवो तो पइप्पएसं ते । जीवम्मि असंखेजा नोजीवा नत्थि जीवो ते ॥२९७०॥ एवमजीवावि पइप्पएसमेएण नोअजीवत्ति । नत्थि अजीवा केई कयरे ते तिन्नि रासित्ति ? ॥२९७१॥ छिन्नो व होउ जीवो किह सो तल्लक्षणोऽवि नोजीवो?। अह एवमजीवस्सवि देसो तो नोअजीवोत्ति २९७२ एवंपि रासओ ते न तिन्नि चत्तारि संपसज्जंति । जीवा तहा अजीवा नोजीवा नोअजीवत्ति ॥२९७३॥ अह ते अजीवदेसो अजीवसामण्णजाइलिंगोत्ति। भिन्नोऽवि अजीवोच्चियन जीवदेसोऽवि किंजीवो? ॥२९७४॥ छिन्नगिहकोलियाविहु जीवोतल्लक्खणेहिं सयलोव्व। अह देसोति न जीवो अजीवदेसोऽविनोऽजीवो ॥२९७५॥ नोजीवंति न जीवादण्णं देसमिह समभिरूढोऽवि । इच्छइ बेइ समासं जेण समाणाहिगरणं सो ॥२९७६।। जीवे य से पएसे जीवपएसे स एव नोजीवो । इच्छइ न.य जीवदलं तुमं व गिहकोलियापुच्छं ॥२९७७॥
SR No.600321
Book TitleVisheshavashyak Bhashyam Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinbhadra Gani Kshamashraman
PublisherRushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha
Publication Year1937
Total Pages496
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size40 MB
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