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विशेषाव
कोट्याचार्य वृत्ती
॥६८०॥
६८०॥
जस्सेह कन्जमाणं कयंति तेणेह विजमाणस्स । करणकिरिया पवन्ना तहा य बहुदोसपडिवत्ती ॥२८०९॥
18 जमालिपक्षकयमिह न कजमाणं सम्भावाओ चिरंतनघडो व्व। अहवा कयपि कीरइ कीरउ निचं न य समत्ती॥२८१०॥ तखंडने किरियावेफल्लंपि य पुब्वमभूयं च दीसए होतं । दीसइ दीहो य जओ किरियाकालो घडाईणं ॥२८११॥ नारंभे चिय दीसइ न सिवादद्धाए दीसह तदंते । तो न हि किरियाकाले जुत्तं कजं तदंतम्मि ॥२८१२॥ थेराण मयं नाकयमभावओ कीरए खपुष्पं व । अहव अकयंपि कीरइ कीरउ तो खरविसाणंपि ॥२८१३।। निच्चकिरियाइदोसा नणु तुल्ला असइ कट्टतरगावा। पुचमभूयं च न ते दीसइ किंखरविसाणंपि ?॥२८१४॥ पइसमउप्पन्नाणं परोप्परविलक्खणाण सुबहणं । दीहो किरियाकालो जइ दीसह कित्थ कुंभस्स?॥२८१५॥
अन्नारंभे अन्नं किह दीसउ? जह घडो पडारंभे। सिवकादओ न कुंभो किह दीसउ सो तदद्धाए १॥२८१६॥ अंते चिय आरद्धोजइ दीसइ तम्मि चेव को दोसो?। अकयं व संपह गए कह कीरउ? कह व एस्सम्मि?२८१७ पइसमयकजकोडीनिरवेक्खो घडगयाहिलासो सि । पइसमयकन्जकालं थूलमइ! घडम्मिलाएसि ॥२८१८॥ को चरिमसमयनियमो ? पढमेच्चिय तो न कीरई कजं । नाकारणंति कजं तं चेवंतम्मि से समए॥२८१९॥ तेणेह कजमाणं नियमेण कयं कयं तु भयणिज्जं । किंचिदिह कन्जमाणं उवरयकिरियं व होजाहि ।।२८२०॥ जं जत्थ नभोदेसे अत्थुव्वइ जत्थ जत्थ समयम्मि । तं तत्थ वत्थमत्धुयमत्थुव्वंतंपि तं चेव ॥२८२१॥ बहुवत्थत्थरणविभिण्णदेसकिरियाइकजकोडीणं । मण्णसि दीहं कालं जइ संथारस्स किं तत्थ ? ॥२८२२॥
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