SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विशेषावः कोव्याचार्य वृत्ती यो इन्द्रि POGOLOGUESSIS प्यानमिलाप्योपलब्ध्यात्मिका ज्ञानशक्तिर्मतिज्ञानमिति भावना, ततश्च यादृशमुपलभते श्रुतं तादृशं वक्त्येव, तद्वाच्यस्यैवंरूपत्वात्, मतिश्रुतनत्वयं मतौ विधिरिति, आह च-'इयरत्थवीं त्यादि, पच्छदं पूर्ववदिति गाथापिण्डार्थः // अस्या भाष्यं, तत्र यविभाग: सामन्ना वा बुद्धी महसुयनाणाई तीऍ जे दिहा। भासइ संभवमेत्तं गहियं न उ भासणामेत्तं // 147 // मइसहियं भावसुयं तं निययमभासओऽवि मइरन्ना। मइसहियंति जमुत्तंसुओवउत्तस्स भावसुयं॥१४८॥ जे भासह चेव तयं सुयं तु न उ भासओ सुयं चेव / केई मइएवि दिट्ठा जं दव्वसुयत्तमुवयंति // 149 // एवं धणिपरिणामं सुयनाणं उभयहा मइन्नाणं / जं.भिन्नसहावाइं ताई तं भिन्नरूवाई // 15 // इयरत्ति महन्नाणं तओवि जइ होइ सहपरिणामो।तोतम्मिवि किं न सुयं भासइज नोवलद्धिसमं // 15 // अभिलप्पाणभिलप्पा उवलद्धा तस्समं च नो भणइ / तो होज उभयरूवं उभयसहावंतिकाऊण // 152 // [4] जं भासइ तंपि जओ न सुयादेसेण किन्तु समईए / न सुओवल द्वितुल्लंति वा जओ नोवलद्धिसमं॥१५॥ - 'सामन्ने'त्यादि, गतार्था तदनया 'बुद्धिद्दिद्वेअत्थे जे भासति' इत्येतद्याख्यातं // 147 // शेषं व्याचिख्यासराह'मती त्यादि, 'तं अभासतोवि भावसुर्य णिततं' व्यवस्थापितमुक्तमित्यर्थः, किंविशिष्टमित्याह-'मतिसहियं मतिसहितमेवैतद् भवतीति नियम्यते, तथा चाह-पच्छद्धं 'मती'त्यादि, 'बुद्धिद्दिष्टे अत्थे जे भासइ तं सुयन्ति भणिऊण 'मतिसहियामिति यदक्तं तत किं ज्ञापयतोक्तमित्यत आह-श्रुतोपयुक्तस्यैव-श्रुतमत्युपयुक्तस्यैव तद्भावश्रुतमिति, विषयविषयिणोश्चात्राभेदो दृश्यः. अथ योऽन्यो विषयभाग थास्ते तमधिकृत्याह-'मतिरन्न'त्ति इति भावितार्थमिति गाथार्थः // 148 // अथेष्टावधारणमाह-'जे भासई GRESS
SR No.600320
Book TitleVisheshavashyak Bhashyam Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinbhadra Gani Kshamashraman
PublisherRushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha
Publication Year1937
Total Pages504
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy