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________________ मतिथुतल विशेषाव कोट्याचार्य POSTOLOSA वृत्ती // 55 // // 45 // ACCOMPORNSESAMACHAL चानेकार्थत्वादयमर्थः-अस्त्विति, आचार्य आह-लक्षणभेदकृतं आदिशब्दात् कार्यकारणभावादिकृतं नानात्वं तयोर्बोद्धव्यं, 'तदविशेषेऽपि स्वाम्याचविशेषेऽपि सत्ताद्यविशेषेऽपि घटाकाशयोरिवेति, उक्तं च पूर्वाचार्यैः-'लक्खणे'त्यादि, गाथार्थः॥९६-९७॥ | किंचेह तद्वस्त्वस्ति यत्केनचिदन्यधम्मिसम्बन्धिना धर्मेण न तुल्यमितिय,थोक्तम्-"जत्थ मइनाणं तत्थ सुयनाण,"मित्यादिवचनादेकत्वमनयोरस्त्विति, ननु तत्राप्यनन्तरं लक्षणभेदेन मेदमभिदधतोक्तं 'तहवि पुणोऽत्यायरिया नाणतं पण्णवयं'ति, कथमित्यतः सौत्र विधिमभिधित्सुराहजमभिनिबुज्झइ तमभिनिबोहोज सुणइ तंसुर्य भणियं / सई सुणइ जइ तओ नाणं तो नाऽऽयभावो तं // 28 // सयकारणं जओ सो सुयं व तक्कारणंति तो तम्मि / कीरइ सुओवयारो सुयं तु परमत्थओ जीवो॥९॥ इंदियमणोनिमित्तं जे विण्णाणं सुयाणुसारेणं / नियअत्युत्तिसमत्थं तं भावसुयं मई सेसं // 10 // जइ सुयलक्खणमेयं तो न तमेगिंदियाण संभवइ / दव्वसुयाभावम्मिवि भावसुयं सुत्तजइणो व्व // 10 // भावसुयं भासासोयलद्धिणो जुजए न इयरस्स। भासाभिमुहस्स जयं सोऊण व जे हवेजाहि // 102 // जह सुहम भाविंदियनाणं दबिदियावरोहेवि / तह दव्वसुयाभावे भावसुयं पत्थिवाईणं // 103 // एवं सव्वपसंगो न तदावरणाणमक्खओवसमा / मइसुयनाणावरणक्खओवसमओ मइसुयाई // 104 // | 'जमभिणी'त्यादि / यद्-वस्त्वमिनिबुध्यते तथाक्षयोपशमबलादाभिमुख्येन 'तमभिनिबोध'त्ति तद्-वस्त्वभिनिवोधमभिधीयते, कारण एव कार्योपचाराद्, अभिनिबोधस्यात्मगुणत्वात् , तथा 'ज सुणइ तं सुयं भणियंति, यच्छृणोति-यदाकर्णयति तत् | SIR O MA
SR No.600320
Book TitleVisheshavashyak Bhashyam Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinbhadra Gani Kshamashraman
PublisherRushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha
Publication Year1937
Total Pages504
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size40 MB
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