________________ विशेषाव० मंदबुद्धित्ति / अवियप्पलाभलद्धी सिस्सो परिभवइ आयरियं ॥१॥"दार।। 'छड्डे'मित्यादिद्वारम् // 'पाउ' मित्यादि // द्वारम् // कोट्याचार्य 'अण्णो' इत्यादि, 'मा मे इत्यादि, दृष्टान्तगाथाद्वयम् // दार्टान्तिकमाह-'सीसा इत्यादि सुचर्चा | 'कोमुई' त्यादि, 'सक्के'त्यादि, | & उद्देशद्वारं है। 'नेही'त्यादि, 'आगंतु'इत्यादि, प्राग्वत् // आभीरिकल्पश्चायोग्य इत्याह-मुक्क'मित्यादि, 'मा'इत्यादि, सुगमम् / दारं / इदानीं / // 427 // IP प्रकृतमुपसंजिहीर्षुराह-भणिया' इत्यादि // तत्र द्वयोरप्यनयोः परीक्षितगुणदोषो योग्यः, सर्वथा योग्याय शिष्यायाचक्षीत सूत्रार्थ || मिति गाथार्थः // 1473-90 // तदनेन ग्रन्थेन यदुक्तमासीत्-"अच्छतु तावुग्घातो' यावत् संगहो चेमो'त्ति (1348) तत्संपादितं, // 427 // तत्संपादनाच्च व्याख्यानविधिरुक्तः, अथ यदुक्तमासीदपान्तराले धुरि वा तदनुस्मरनाह-कतेत्यादि, 'उद्देसे' इत्यादि, तत्रेदं द्वारगाथाद्वयम् / / 'कि'मित्यादि // अस्य पिण्डार्थः प्रतीत एव // 1491-93 // कस्मादादावुद्देशः 1 इत्यत आह उद्देट्टुं निहिस्सइ पायं सामन्नओ विसेसोत्ति / उद्देसो तो पढमं निद्देसोऽणंतरं तस्स // 1494 // * नाम ठवणा दविए खेत्ते काले समासउद्देसे / उद्देसुद्देसम्मि य, भावम्मि य होइ अट्ठमओ ॥(नि.१४२) नाम जस्सुद्देसो नामेणुद्देसए व जो जेणं / उद्देसो नामस्स व नामुद्देसोऽभिहाणंति // 1496 // एवं नणु सव्वोचिय नामुद्देसो जओऽभिहाणंति। दव्वाईणं तेहिं व तेसु व जं कीरए जस्स // 1497 // सचं सव्वाणुगओ नामुद्देसोभिहाणमेत्तं जं। नाणत्तं तहवि मयं मइकिरियावत्थुमेएहिं॥१४९८॥ ठवणाए उद्देसो ठवणुद्देसोत्ति तस्स वा ठवणा / तं तेण तओ तम्मि व दवाईयाणमुद्देसो // 1499 // दब्बुहेसो दव्वं दवपई दव्ववं सदव्वोत्ति / एवं खेत्तं खेती खेत्तपई खेत्तजायंति // 1500 // KOLMASHARIKI