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________________ वृत्ती विशेषाव कोमुइया तह संगामिया य उन्भूइया उ भेरीओ। कण्हस्सासि ण्हुतया असिवोवसमी चउत्थी उ // 1484 // उपोदयात कोट्याचार्य सक्कपसंसा गुणगाहि केसवोनेमिवंद सुणदंता। आसरयणस्स हरणं कुमारभंगे य पुयजुद्धं // 1485 // द्वाराणि || नेहि जिओम्हित्ति अहं असिवोवसमीऍ संपयाणं च / छम्मासियघोसणया पसमइ न य जायए अन्नो॥१४८६॥ // 425 // आगंतु वाहिखोभो महिड्डि मोल्लेण कंथ दंडणया। अट्ठमआराहण अन्नभेरि अन्नस्स ठवणं च // 1487 // // 425 // मुकंतया अगहिए दुप्परिग्गहियं कयं तया कलहो। पिट्टण अइचिरविक्कय गएसु चोरा य ऊणग्घे // 1488 // मा निण्हव इय दाउं उवजुन्जिय देहि किं विचिंतेसि / वच्चामेलियदाणे किलिस्ससी तं चाहं चेवं // 1489 // भणिया जोग्गाऽजोग्गा सीसा गुरवोय तत्थ दोण्हपि / वेयालियगुणदोसोजोग्गोजोग्गस्स भासेज्जा॥१४९०॥ कयमंगलोवयारो संपइ वण्णियपसंगवक्खाणो / दाइयवक्खाणविही वोच्छमुवग्घायदारविहिं // 1491 // 2 उद्देसे निद्देसे य निग्गमे खेत्त-काल-पुरिसे य / कारण-पच्चय-लक्खण-नए समोयारणा-णुमए (नि.१४०) 4 15/ किं कइविहं कस्स काहिं केसु कहं केच्चिरं हवइ कालं। कइ संतरमविरहियं, भवा-गरिस-फोसण-निरुत्ती॥ ___ 'सेले'त्यादि द्वारगाथा // आद्यद्वारमाह-'उल्ले' इत्यादि // अहमार्दीकत्तुं न शक्यः, शेषं स्पष्टम् // 'रवी'त्यादि // पश्चाद्धेन ||* KI दार्शन्तिकदोषानाह / 'आयरिये इत्यादि / आचार्यसूत्रयोर्लघुत्वं सूत्रार्थपलिमन्थश्च, गुरोरन्येषां वाऽन्तरायः, नहि निर्युक्ताऽपि वन्ध्या धीरमिवेति गाथार्थः॥१४६२-६५|| प्रतिपक्षमाह-'वुढेऽवी त्यादि स्पष्टम् / दारं॥६६॥ भावीत्यादि। कुडा दुविहा-भाविया अभा
SR No.600320
Book TitleVisheshavashyak Bhashyam Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinbhadra Gani Kshamashraman
PublisherRushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha
Publication Year1937
Total Pages504
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size40 MB
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