________________ योग्यायोग्याः वृत्ती विशेषाव०४ जे उण अभाविया ते चउब्धिहा अहविमो गमो अन्नो / छिडकुड-भिन्न-खंडे संगले य परूवणा तेसिं / 1470 / / कोव्याचार्य सेलेयछिडुचालणि मिहो कहा सोउमुट्ठियाणं तु। छिड्डाऽऽह तत्थ बिट्ठो सुमरिंसु सरामि नेदाणि // 1471 / / एगेण विसइ बितिएण नीइ कन्नेण चालणी आह / धन्नत्थ आह सेलो जं पविसइ नीइ वा तुझं // 1472 // IRI शिष्याः // 424|| तावसखउरकिढिणयं चालणिपडिवक्ख न सवइ दवंपि। परिपूणगम्मि उ गुणा गलंति दोसाय चिटुंति॥१४७३॥ 1 424 // सवण्णुप्पामण्णा दोसा हुन संति जिणमए केई। जं अणुवउत्तकहणं अपत्तमासन व हवेज // 1474 // अंबत्तणेण जीहाऍ कूचिया होइ खीरमुदगस्मि। हंसो मोत्तूण जलं आवियइ पयं तह सुसीसो॥१४७५॥ सयमविन पियइ महिसोन य जूहं पियइ लोलियं उदगं। विग्गह-विकहाहिंतहा अथक्कपुच्छाहि य कुसीसो।१४७६४ अवि गोपयम्मिवि पिबे सुढिओ तणुयत्तणेण तुंडस्सा न करेइ कलुसतोयं मेसो एवं सुसीसोवि॥१४७७॥ मसउव्व तुदं जच्चाइएहिं निच्छुब्भए कुसीसोऽवि। जलुगाव अदू तो पिबइ सुसीसोवि सुयनाणं // 1478 // छडेउं भूमीए खीरं जह पिबइ दुहमजारी। परिसुट्ठियाण पासे सिक्खइ एवं विणयभंसी // 1479 // पाउं थोवं थोवं खीरंपासाइं जाहगो (जह) लिहइ। एमेव जियं काउं पुच्छह मइमं न खेएइ // 1480 // दारं।। अन्नो दोज्झिइ कल्ले निरत्थयं किं वहामि सेचारि।चउचरणगवी उमया अवन हाणीय बडुयाणं॥१४८१॥ मा मे होज अवण्णो गोवज्झा वा पुणोऽवि न दलेजा। वयमपि दोज्झामु पुणोअणुग्गहो अन्नदृढेऽवि // 1482 // सीसा पडिच्छगाणं भरोत्ति तेऽविय हु सीसगभरोत्ति। न करेंति सुत्तहाणी अन्नत्थवि दुल्लहं तेसिं // 1483 // THANESAROKAR