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________________ विशेषाव कोट्याचार्य ४व्याख्यान"याणातच.हातमा विधि: S वृत्ती // 420 // // 420 // EASKA520k करेइ सो न जोग्गो, इतर एब योग्यः 2 // 'चेडीओवित्ति-वसंतपुरे पुराणाभिणवसेद्विधूयाणं पीई, एगाए खारो य, 'मूर्खाणां पण्डिता द्वेष्याः, दरिद्राणां तथेश्वराः" इति वचनात् , अम्हेहिं इमेहिं वट्टियाणित्ति, ताओ य अन्नया णई मज्जियाओ गयाओ, सा नवसेठिधूया तिलगचोद्दसगमाभरणं तडे मो-13 तूण तीए सह जलमज्जणकीलावियप्पेहि मज्जइ, इयरीवि तं गहाय नियं घरं पट्टिया, इयरीए वारिया, सा अक्कोसंती गया, भणइ | य-जइ नाम णडा मुट्ठा किं वा तेसिं लोगा विणट्ठत्ति ममच्चयं चेव, ताए मायापिताण सिटुं, तानि भणंति-सोहणं कयंति, इयरीबिण्हा| इत्ता णियं घरं गया, अम्भापितीण साहियं, तेहिं मग्गियं, ताणि न देंति, ततो रायउले ववहारो, तत्थ न कोऽवि सक्खी, तत्थ कारणिया उप्पत्तियाए बुद्धीए भणंति-दोवि चेडीओ वाहिप्पंतु, तं चाणिजउ, तहा कयं, जुण्णसेट्ठिदुहिया भणिया-जइ तुह सन्तयं ता आविंधसु, ताहे सा जं हत्थे तं पाए आविधेइ, तंपि से ण सुसिलिटुं, ताहे नायं-एईए इमं न तावत्ति, ततो इयरी भणिया-तुम | आविंध, बीइएवि अणुक्कमेण सव्वं जहा सट्ठाणे आइदं, देवयादिव दीसइ पमाणोवेयं च, ताहे मेल्लाविया, तहेव य झडत्ति परिवाडीए | ओइंघइत्ति, जुन्नसेट्ठी देवडंडिओऽवि पुणोऽवि डंडिओ, सावि धिक्कारं पत्ता, इयरा उ जसवायं, एवं आयारिओऽवि जं अण्णत्थच्चयं | पयं जोएयव्वं तं अन्नत्थ जोजयन्तो अणतं संसारदण्डं पावइ, इयरधाउ वा मो(बीओ वा सो)उ नेवाणं विहिभणिए वा, अत्थाणत्थनिओअओ सीसो जुण्णसेद्विधूयब्ध अजोगोत्ति 3 // 'सावए'त्ति कथितमेवेति 4 // वहिरगोहोदाहरणंपि 5 / / इदानी टंकणगववहारोदाहरणम्-उत्तरावहे टंकणा नाम मेच्छा, ते सुवन्नेण दक्खिगावहाणि भंडाणि गेहंति, ते य परोप्परं भासं न याणन्ति, तो पुंजेहिं काउं हत्थेहिं ओहाडेंति जाव य इच्छा न पूरा ताव हत्थेग अत्रणेति, एवं तेतिच्छियपडिच्छिओ ववहारो, एवं दोवि सिस्सा FARRIAGARMACRORSC
SR No.600320
Book TitleVisheshavashyak Bhashyam Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinbhadra Gani Kshamashraman
PublisherRushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha
Publication Year1937
Total Pages504
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size40 MB
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