________________ नानारावापानापना व्याख्यान विधिः // 419 // उस्स गुणपरिकित्तणं करेइ-अहो ! उत्तमपुरिसाणं गुणो-जण्ण इमे कस्सइ अवगुणं गेण्हंतित्ति, नीयं च कम्मं न करेंतित्ति, एगो य देवो विशेषाव कोट्याचार्य है | असद्दहंतो आगओ, वासुदेवोऽवि जिणसगासं वंदिउं पहिओ, सोऽवि से अंतरा मयगकालसुणगं विउव्वइ, तस्स गंधेण अग्गाणीयं अन्नवृत्ती साओ लग्गं. वासुदेवेण पुच्छियं, कहियं, सो तत्थेव गओ भणइ-भो ! भो! पेच्छ-अहमसिणकसिणवत्थंचलोवमे आययंमि से बयणे। | मुत्तावलिव्व रेहइ सुविमलजोण्हा दसणपंती॥१॥ ति देवेण चिंतियं-सच्चं गुणगाहित्ति / तओ से सो आसरयणं गहाय पलाइओ, // 419 // | वंदुरावालएण कहियं, कुमारा रायाणो य निग्गया, देवेण जिणिऊण धाडिया, वासुदेवो धाविओ, देवो भणइ-मं पराजिउं गेण्ह, किं | व धाविओसि ?, वासुदेवो भणइ-बाद, किं तु तुमं भूमीए अहं रहेण ता रहं गेण्ह, देवो नेच्छइ, आसहत्थियावि नेच्छइ, बाहुजुद्धाइयाइंच, भणइ य-जइ सच्चं ता अहिट्ठाणजुद्धं देहि, वासुदेवेण भणियं-पराजिओऽहं, नेहि आसरयणंति, तओ दस दिसाओ उज्जोएंतो | तुट्ठो देवो भणइ-वरेहि वरं, किं देमित्ति, वासुदेवो नेच्छइ, तेण भणियं-अमोहं देवाण दंसणंति, ततो वासुदेवेण भणियं-जइ एवं अ. सिवोवसमणि भेरिं देह, ततो से दिन्ना, एसा से उप्पत्ती / ताहे सा छण्डं 2 मासाणं ताडिज्जइ, तस्स सहसवणेण वारसजोयणभंतराए नयरीए पुव्वुप्पन्ना रोगा उवसमंति, अहिणवा य छम्मासं न होंति, जत्य य अन्नया अइदाहजरगहियवाणियएण भेरीवालगो तीए करिसमेतं दीणारलक्खेण मग्गिओ, तेणऽवि अणालोइऊण लोभदोसेण दिन्नं, तत्थ य इयरचन्दणथिग्गलिया दिण्णा, एवं अन्नेणवि 2 मग्गिओ, सा भेरी चन्दणकथा जाया, अन्नया असिवे ताडाविया जाच ते चेव सभं न पूरेइ, चिट्ठउ नगरी, जोयाविया जाव कथीजाया, सो भेरीवालगो निग्गहिओ, सावि उज्झिया, अन्ना मेरी अट्ठमोववासाराहिएण तेण से दिण्णा, अण्णस्स समप्पिया, सो तंचेव दिणंति पयत्तेण रक्खइ, एवं जो सीसो आयरिओ वा परमयचंदणकचलियाहिं जिणगणहरदिण्णसुयमेरी कंथी KAROR