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________________ विशेषाव कोव्याचार्य वृत्ती // 42 // योग्यायोग्याः गुरुशिष्याः // 421 // | यरिया जे होंति जोग्गा दानग्रहणानुवृत्तिशीलत्वात् , 'पडिवक्खो आयरियसिस्से ति इत्युक्तेन गवादिद्वारेषु साक्षादमिहिताविपर्ययः प्रतिपक्षः, स आचार्यशिष्ययोर्यथायोगं योजनीयः, स च योजित एवेति गाथार्थः // 1442 // भग्गनिविढे गोणि केउं दंतो व्वन सुयमायरिओ। एवं मएवि गहियं गेण्ह तुमंपित्ति जंपतो // 144 / / अविकलगोविक्केया व जो विमद्दक्खमो सुगंभीरो। अक्खेवनिण्णयपसंगपारओ सो गुरू जोग्गो।१४४४॥ सीसोवि पहाणयरो णेगंतेणावियारियग्गाही / सुपरिच्छियकेया इव थाणवियारक्खमो इहो // 1445 // जो सीसो सुत्तत्थं चंदणकथं व परमयाईहिं / मीसेइ गलियमहवा सिक्खियमाणेण स न जोग्गो॥१४४६॥ कंथीकयसुत्तत्थो गुरूवि जोग्गो न भासियव्वस्स / अविणासियसुत्तथा सीसायरिया विणिहिट्ठा / 1447 / अत्थाणथनिउत्ताभरणाणं जिण्णसेहिधूयव्व / न गुरू विहिभणिए वा विवरीयनिओयओ सीसो।१४४८। सत्थाणत्थनिउत्ता ईसरधूया सभूसणाणं व / होइ गुरू सीसोवि य विणिओएंतो जहाभणियं // 1449 // चिरपरिचियंपि न सरह सुत्तत्थं सावओ सभज्नं व। जो न स जोग्गो मीसो गुरुत्तणं तस्स दूरेणं // 1450 // अन्नं पुट्ठो अन्नं जो साहइ सो गुरून बहिरुब्व / न य सीसो जो अन्नं सुणेइ परिभासए अन्नं // 1451 // अक्खेवनिण्णयपसंगदाणगहणाणुवत्तिणो दोऽवि / जोग्गा सीसायरिया टंकणवणिओवमा समए।१४५२॥ अहवा गुरुविणयसुयप्पयाणभंडविणिओगओ दोऽवि / निजरलाभयसहिया टंकणवणिओवमा जोग्गा॥ अत्थी स एव य गुरू होइ जओ.तो. विसेसओ सीसो / जोग्गाऽजोग्गो भन्नइ तत्थाजोग्गो इमो होइ।१.५४॥ RECAUSARAN
SR No.600320
Book TitleVisheshavashyak Bhashyam Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinbhadra Gani Kshamashraman
PublisherRushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha
Publication Year1937
Total Pages504
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size40 MB
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