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________________ विशेषाव एगेण सावगेण नियमजाए वयंसिया ओरालसरीरा दिवा, सो तीए अज्झोववष्णो, चिंताये पइदिणं दुबलीभवंतो भजाएअनयोगानकोखाचार्या पुच्छिओ, नय कहेइ लजाए, निब्बन्धे य कए कहिओ सम्भावो, तीएऽवि ससंभमं भणिओ-हा किमेत्तियं कालं न कहियंति !, नुयोगयो तओ तीए भणिओ, घडिया सा मए तुहं, किंतु सा तुह वियाले सोवणियं पविसंती पदी निव्वावेहित्ति, तो तीए वयंसियाए दृष्टान्ताः // 410 // दि कुंडलाइ आमरणं सोहग्गललियचुन्नियाजुयलं च परिहियं, ततो तस्स वासभवणं पदीवालोयरमणिजं पविसिऊण निव्वाविओ // 410 // है दीवो, अच्छिया, ण य किंपि जंपियं, सरविसेसो वा तहा कओ, बसिया, विभायाए रयणीए णियए चेव वासे ठिया, पविट्ठा य वासमवणं, गोसे संजमणी कया, सड्ढोऽवि तओ दिवसाओ अहिययरं दुबलीहोइउं पयत्तो-सयलसुरासुरपणमियचलणेहिं जिणेहिं जं इहं मणियं / तं परभवसंपलयं हा हा मे खंडियं सीलं ॥१॥"ति, भजाए जाणतीएवि भणिओ-विणिया ते सद्धा, तओऽवि दुब्बलीहै होहिसित्ति, तेण भणियं-डहई अकज्ज कयं पच्छत्ति, तओ तीए साभिण्णाणं पत्तियाविओ, सद्धिइओ जाओ, एवं जो ससमयवत्तव्वयं परसमयवत्तन्वयंति भणति, उदइयलक्खणेण वा उपसमियं भन्नइ ताहे अणणुओगो, समं परूविज्जमाणे | विवज्जोति 1 // सप्तभिः पदैर्व्यवहरतीति साप्तपदिकः-एक्कमि पच्चंतगामे एक्को ओलग्गयमणूसो, समणमाहणादीणमुवएसं ण सुणेइ, ण वा अल्लियइ, न वा सेज्जं देइ, मा मे धम्मं कहेहित्ति, सदयो होक्खामित्ति, अन्नया य तं गामं साहुणो आगया, वसहिं मग्गंति. तओ खेड्डावेक्खएहिं गामिल्लएहिं सो चेव चिंधिओ-एरिसो तारिसो एस सावगोत्ति, गया, दिट्ठो, धम्मलाभिओ य, ण उण आढाइ, तओ एक्केण साहुणा भणियं-पवंचिया वा तेहि, ण वा सो एसोसि, तेण भणियं-किं कि भणहित्ति ?, साहहिं कहियं-जहा तुमं सावगो एरिसो तारि RASAKARA ॐॐRASA%
SR No.600320
Book TitleVisheshavashyak Bhashyam Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinbhadra Gani Kshamashraman
PublisherRushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha
Publication Year1937
Total Pages504
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size40 MB
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