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________________ * वृत्ती * * विशेषाव | 'गामेल्लयत्ति, अत्रैव द्वितीयम्-एका नागरमहिला भतारे मए गामे वुत्था, कट्ठाइसयंगाहलाभाओ, तीसे य पुत्तो खुडलओ, अनुयोगान कोव्याचार्य * सो वद्धंतो मायरं पुच्छइ-कहिं मे पियत्ति?, सा भणइ-मओ, सो केणोवाएण जीवियाइओ?, सा भणइ-ओलग्गाए, सो भणइ-ताऽहं नुयोगयो ओलग्गामि, सा भणइ-न याणसि तुमं ओलग्गिउं, सो भणइ-कहं पुण ओलग्गिजइ ?, सा भगइ-विणएण, सो भणइ-केरिसो विणओ दृष्टान्ताः // 408 // | जो मए कायव्वोत्ति ?, सा आह-दिट्ठो जोहारिजइ, जं जं सो भणइ तं च कायव्वं / पडियारेयव्वं, न कयाइवि पाणचाएऽवि // 1 // // 408 // तओ सो आमंति भणित्ता पढिओ नगराभिमुहो-झाडंतरमयलि(ह लु)के, पेच्छइ आगरिसिएहि धणुहेहिं / वाहे ते दट्ट्टणं, महया | सद्देण जोक्कारे // 2 // तओ हरिणेसु पलाइएसु तेहिं सो बद्धो पिट्टिओ, सम्भावे कहिए मुक्को, भणिओ णेहिं-जइ पिच्छसि एरिसयं पुणोऽवि तो सणियगं निलुक्कतो। ओयरिओ बच्चेजसु, तुसिणीओ णिण्णदेसेण // 1 // सो एवं होउत्ति पढिओ नगराभिमुहो, तत्थ य पुरओ रयगा वत्थाणि धोवंति, हरइ य दिवसे२ तेसिं वत्थाणि कोइ चोरोत्ति। तो खड्डासिंगेसुं, तेहिं तया थाणयं दिण्णं // 1 // सोवि | य तहेव खड्डाएँ एंतओ तेहिं रयगचूडेहिं / दिट्ठो गहिओ बद्धो, कहिए मुक्को य सम्भावे // 2 // भणिओ य हियट्ठाए जइया दीसइ | इमेरिसं तइया / होउह सुद्धं खारो पडउ य एवंति भणिऊग // 3 / / पुणो नगराभिमुहो पट्टिओ-पेच्छइ य मंगलसएहिं वप्पिणं करिसगेहि चुप्पंतं भणियं च तहा। बद्धो, मुक्को कहिए य परमत्थे // 4 // भणिओ य भणिजसु एरिसंमि भंडिं भरेह एयस्स। बहुयं च होउ एवं & होहि पुणो एरिसं तुम्हं // 5 // एवं सो उत्तिए पुणो पट्ठिओ-पेच्छइ नगरदुवारे मयगं नीणिजमाणमिइ भणिये / बद्धो कहिएँ / | मुक्को भणिओ य भणिजए एवं / // 6 // एएण एरिसेणं, कजेगं होउ भे विओगोत्ति / मा एरिसयं कजं, पावेजह अन्नजम्मेऽवि // 7 // | ततो एवं भणिऊण नगररत्थाये-हत्थिक्खंधवरगयं दट्टणं वहूवरं विभूईए। गच्छंतं इडिकाहलसद्देणं सो तयं भणति // 8 // 'एएण'मि * **
SR No.600320
Book TitleVisheshavashyak Bhashyam Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinbhadra Gani Kshamashraman
PublisherRushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha
Publication Year1937
Total Pages504
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size40 MB
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