________________ विशेषाव कोट्याचार्य वृत्तौ नामादिभिः अनुयोगोऽ| ननुयोगश्च // 403 // // 40 // SIONAMESSAGAR खेत्तेहिं बहू दीवे पुढविजियाणं तु पत्थर्य काउं। एवं मविजमाणा हवंति लोगा असंखेजा // 1408 // दारं / खेत्तम्मि उ अणुओगो तिरियं लोगम्मि जम्मि वा खेत्ते। अड्डाइयदीवेसु छलद्धवीसाए खेत्तेसु // 1409 // कालस्स समयरूवण कालाण तदाइ जाव सम्बद्धा। कालेणनिलाऽवहारो कालेहि उसेसकायाणं // 1410 // कालम्मि बीयपोरिसि समासु तिसु दोसुवावि कालेसु / वयणस्सेगवयाई वयणाणं सोलसण्हं तु॥१४११॥ वयणेणायरियाइ एकेणुत्तो बहहिं वयणेहिं / वयणे खओवसमिए वयगेसु उ नत्थि अणुओगो॥१४१२॥ भावस्सेगयरस्सउ अणुओगोजो जहडिओ भावो। दोमाइसंनिगासे अणुओगो होइ भावाणं॥१४१३।।दारं। भावेण संगहाईणऽण्णयरेणं दुगाइभावेहिं / वयणे खओवसमिए भावेसु य नत्थि अणुओगो // 1414 // अहवा आयाराइसु भावेसुवि एस होइ अणुओगो। सामित्तं आसज्ज व परिणाममुं बहुविहेसं॥१४१५॥दारं॥ दव्वे नियमा भावो न विणा ते यावि खेत्तकालेहिं / खेत्ते तिण्हवि भयणा कालो भयणाए तीसुपि // 1416 // आधारो आधेयं च होइ दव्वं तहेव भावो य / खेत्तं पुण आहारो कालो नियमाउ आहेओ // 1417 // एसोऽणुरूवजोगो गओष्णुओगो अओ विवज्जत्थं / जो सो अणणुओगो तत्थेमे होंति दिटुंता // 1418 // 'नाम'मित्यादि। आद्यद्वारव्याचिख्यासयेदमाह-'नामस्से त्यादि स्पष्टा, नवरं 'योग्य' अनुकूल इत्येवं सर्वत्र ॥९५-६||द्वारम् / / 'ठवणे'त्यादि, सुगमा ॥द्वारम् / / 97 // द्रव्यानुयोगद्वारमाह-'दव्वस्से'त्यादि / 'बहु'इत्यादि / द्रव्यस्य योऽनुयोगः, सो दवाणुयोग इत्यत्र सम्बन्धः, तथा 'द्रव्ये' निषद्यादावधिकरणभूते 'द्रव्येण' करणभूतेन क्षीरपाषाणदलकेन, इह च द्रव्यस्य द्रव्येण द्रव्य इत्येव