________________ मानामादिभिः वृत्ती विशेषाव०४ | "अहवे'त्यादि, उक्तार्थम् // 1393-94 // साम्प्रतमाद्यद्वारे प्रतिद्वारगाथामाहकोव्याचार्य में नामं ठवणा दविए खेत्ते काले य वयण भावे य। एसो अणुओगस्स उ निक्खेवो होइ सत्तविहो ।नि.१२६। | अनुयोगोऽ नामस्स जोऽणुओगो अहवा जस्साभिहाणमणुओगो। नामेण व जोजोग्गोजोगो नामाणुओगोसो॥१३९६॥ ननुयोगश्च ठवणाए जोऽणुओगोऽणुओग इति वा ठविजए जंच।जा वेह जस्स ठवणा जोग्गा ठवणाणुओगोसो॥१३९७।। // 402 // // 402 // दव्वस्स जोऽणुओगो दब्वे दब्वेण दव्वहेऊ वा / दव्वस्स पज्जवेग व जोगो दब्वेण वा जोगो // 1398 // बहुवयणओऽवि एवं नेओ जो वा कहे अणुवउत्तो। दव्वाणुओग एसो एवं खेत्ताइयाणंपि // 1399 // दव्वस्स उ अणुओगो जीवदव्वस्स[वा अजीवदव्वस्स। एक्के कम्मिवि भेया हवंति दवाइया चउरो॥१४००॥ दवेणेगं दव्वं संखाईयप्पएसमोगाढं। कालेऽणाइ अनिहणो भावे नाणाइयाऽणंता // 1401 // एमेव अजीवस्सवि परमाणू दव्व एगदब्वं तु / खेत्ते एगपएसे ओगाढो सो भवे नियमा // 1402 // समयाइठिइ असंखा ओसप्पिणीओ हवंति कालम्मि / वण्णाइ भावऽणंता एवं दुपएसमाईवि // 1403 / / दव्वाणं अणुओगो जीवाजीवाण पज्जवा नेया / तत्थवि य मग्गणाओऽणेगा सहाणपरठाणे // 1404 // वत्तीए अक्खेण व करंगुलाईण वावि दवेणं / अक्खेहि य दब्वेहिं अहिगरणे कप्प-कप्पेहिं // 1405 / / पन्नत्ति जंबुदीवे खेत्तस्सेमाइ होइ अणुओगो / खेत्ताणं अणुओगो दीवसमुदाण पन्नत्ती // 1406 // जंबुद्दीवपमाणं पुढविजियाणं तु पत्थयं काउं / एवं मविजमाणा हवंति लोगा असंखेज्जा // 1407 / /