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________________ प्रवचनसूत्राथकार्थाः // 397 // विशेषावःएवोत्पत्तिरुक्ता जिनगणधरेभ्यः सकाशात्, यत्पुनरुक्तं तद्वा जिनप्रवचनं कियदभिधानं ? अभिधानविभागो वाऽस्य कः ? कोव्याचार्य इति // 1372 // अत्रोच्यते वृत्तौ / एगट्टियाइं तिन्नि उ पवयण सुत्तं तहेव अत्थो य / एक्वेक्कस्स य एत्तो नामा एगट्ठिया पंच॥नि.१२३] // 397 // / जमिह पगयं पसत्थं पहाणवयणं व पवयणं तं च / सामन्नं सुयनाणं विसेसओ सुत्तमत्यो य ॥१३७४॥दारं | सिंचइ खरइ जमत्थं तम्हा सुत्तं निरुत्तविहिणा वा। सूएइ सवइ सुब्बइ सिव्वइ सरए व जेणत्थं // 1375 / / अविवरियं सुत्तं पिव सुट्टिय वावित्तओव सुत्तंति। जो सुत्ताभिप्पाओसो अत्थो अज्जए जम्हा // 1376 // सह पवयणेण जुत्ता न सुयत्थेगत्थया परोप्परओ। जं सुत्तं वक्खेयं अत्थो जे तस्स वक्खाणं // 1377 // जुबइ व विभागाओ तिण्हविभिन्नत्थया न चेयरहा / एगत्थाणंपि पुणो किमिहेगत्थाभिहाणेहिं // 1378 // मउलं फुलंति जहा संकोयविबोहमित्तभिन्नाई। अत्थेणाभिन्नाई कमलं सामण्णओ चेगं // 1379 // अविवरियं तह सुत्तं विवरियमत्थोत्ति बोहकालम्मि / किंचिम्मत्तविभिन्ना सामन्नं पवयणं नेयं // 1380 // सामन्नविसेसाणं जह वेगाणेगया ववत्थाए / तदुभयमत्थो य जहा वीसुं बहुपजवा ते य॥१३८१॥ एवं सुत्तत्थाणं एगाणेगत्थया ववत्थाए / पवयणमुभयं च तयं तियं च बहुपजयं वीसुं॥१३८२॥ अहवा सव्वं नामं वंजणसुद्धियनयस्स भिन्नत्यं / इयरस्साभिन्नत्यं संववहारो य तदवेक्खो // 1383 // संववहारट्ठाए जम्हा जेणेगया न निच्छयओ। तो जुत्ताई तेसिं वीसुं पज्जायनामाई // 1384 // ANSAHARAN SACROBACAREXAAAAACACANCIE
SR No.600320
Book TitleVisheshavashyak Bhashyam Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinbhadra Gani Kshamashraman
PublisherRushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha
Publication Year1937
Total Pages504
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size40 MB
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