________________ विशेषाव है काव्याचाय वृत्ती कषायदुष्टता // 384 // // 384 // CAMERICC तम्मि भवे निव्वाणं न लभइ उक्कोसओ व संसारं / पोग्गलपरियदृद्धं देसूर्ण कोइ हिंडेजा // 1315 // जइ उवसंतकसाओलहइ अणंतं पुणोऽवि पडिवायं / न हुभे वीससियव्वं थोवेवि कसायसेसम्मि।नि.११९॥ 8 अणथोवं वणथोवं अग्गीथोवं कसायथोवं च / न हु भे वीससियव्वं थोपि हु तं बहुं हाइ।नि.१२०॥ दासत्तं देइ अणं अइरा मरणं वणो विसप्पंतो। सव्वस्स दाहमग्गी देंति कसाया भवमणंतं // 1318|| ओवसमं सामाइयमुइयं खाइयमओ पवक्खामि / सुहुममहक्खायपि य वयसेढिसमुन्भवं तं च // 1319 // अण-मिच्छ-मीस-सम्मं अट्ठ नपुंमित्थियछक्कं च / पुमवेयं च खवेई कोहाईए य संजलणे // 1320 // पडिवत्तीए अविरय-देस-पमत्ता-ऽपमत्तविरयाणं / अन्नयरो पडिवजइ सुद्धज्झाणोवगयचित्तो // 1321 // पढमकसाए समयं खवेइ अंतोमुहुत्तमेत्तेणं / तत्तो चिय भिच्छत्तं तओ य मीसं तओ सम्म // 1322 // बद्धाऊ पडिवन्नो पढमकसायक्खए जइ मरेज्जा / तो मिच्छत्तोदयओ चिणेज भुज्जो न खीणम्मि / 1323 // तम्मि मओ जाइ दिवं तप्परिणामो य सत्तए खीणे / उवरयपरिणामो पुण पच्छा नाणामइगईओ।१३२४। खीणम्मि दसणतिए कि होइ तओ तिदसणाईओ?। भण्णइ सम्मद्दिट्ठी, सम्मत्तखए कओ सम्मं // 1325 / निव्वलियमयणकोदवरूवं मिच्छत्तमेव सम्मत्तं / खीणं न उ जो भावो सद्दहणालक्खणो तस्स // 1326 // सो तस्स विमुद्धयरो जायइ सम्मत्तपोग्गलक्खयो। दिहिव्व सण्हसुद्धन्भपडलविगमे मणूसस्स / 1327 /