________________ + विशेषाव कोव्याचार्य **** उपशम * +5+4+4+4 + // 38 // // 380 // * किरियाएँ कुणइ रोगो मंदं पीलं जहाऽवणिजंतो। किरियामेत्तकयं चिय पएसकम्मं तहा तवसा // 1304 // दसणमोहाईओ भण्णइ अनियट्टिबायरो परओ / जाव उ सेसो संजलणलोभसंखेजभागोत्ति / / 1305 // दसणतिगे पसंते करणतिगं कुणइ मोहसमणत्थं / आदिदुगंमि विसोही केवलमणियट्टिकरणस्स // 1306 // | संखिजइमे तो सेसे लोभोवसमओ कमा कम्मे / जाव उ सेसो संजलण लोभसंखेनभागोत्ति // 1307 // तदसंखेजइभागं समए समए समेइ एक्केक्कं / अन्तोमुहुत्तमेत्तं तस्सासंखेजभागपि // 1308 // लोभाणुं वेतो जो खलु उवसामओ व खवओवा।सो सुहमसंपराओ अहखाया ऊणओ किंचि (नि.११७) | उवसामगाहिगारे तस्समभागोत्ति खवगनिद्देसो। सहमसरागातीतोऽहक्खाओ होइ निग्गंथो // 1310 // बद्धाऊ पडिवन्नो सेढिगओ वा पसंतमोहो वा / जइ कुणइ कोइ कालं वच्चइ तोऽणुत्तरसुरेसुं॥१३११॥ अनिबद्धाऊ होउं पसंतमोहो मुहत्तमेत्तद्धं / उइयकसाओ नियमा नियत्तए सेढिपडिलोमं // 1312 // 'अणे'त्यादि / 'अणे'त्यनन्तानुबन्धिनो वक्ष्यमाणशब्दार्थाश्चत्वारः क्रोधमानमायालोभाः तांश्चतुरोऽपि अन्तर्मुहउँन युगपदुपशमयति-एकान्तनिस्फुरान् करोति तिरश्चीनरचितत्वात्, तदो 'दंस'त्ति मिथ्यादर्शनादित्रयमेवेति भावना, ततो 'नपुंस'ति, पुरुषस्य प्रक्रान्तत्वादनुदीर्णजघन्यतरवेदं, स्त्रीवेदस्य मध्यमतरत्वात् अतिरश्वीनत्वेनैकत्वात् , तथैव भावना, ततो 'इत्थिति स्त्रीवेदं, मध्यममित्यर्थः, ततो हास्यरत्यरतिभयशोकजुगुप्साषट्कं 'चः' समुच्चयार्थः, ततः प्रधानत्वादात्मीयत्वात्पुरुषवेदं, चः प्राग्वत् , शेषं च, ततो द्वौ द्वौ सदृशत्वेन समानजातीयौ क्रोधौ अप्रत्याख्याननामधेयप्रत्याख्यानावरणौ, एवं मानौ माये लोमौ च प्राय एकैकेन 4 4 ******O******* 4 45 45