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________________ विशेषाव० कोव्याचार्य चारित्रपंचकं वृत्ती // 375 // // 375 // *44435*343 चिट्ठ० (गिम्हसिसिरवासासुं चउत्थयाईणि बारसंताई / अड्डोक्कंतीइ जहण्णमज्झमुक्कोसय तवाणं)॥ / सेसा उ निययभत्ता पायं भत्तं च ताणमायाम। होइ नवण्हवि नियमा न कप्पए सेसयं सव्वं // 1279 // परिहारियाणुपरिहारियाण कप्पट्टियस्सवि य भत्तं / छच्छम्मासा उ तवो अट्ठारसमासिओ कप्पो॥ कप्पसमत्तीए तयं जिणकप्पं वा उति गच्छं वा / ठियकप्पे चिय नियमा दो पुरिसजुगाइं ते होंति // कोवाइ संपराओ तेण जओ संपरीइ संसारे / तं सुहुमसंपरायं सुहुमो जत्थावसेसो सो // 1282 // सेहिं विलग्गओ तं विसुज्झमाणं तओ चयंतस्स / तह संकिलिस्समाणं परिणामवसेण विनेयं // 128 // अहसदो जाहत्थे आङ्गोऽभिविहीए कहियमक्खायं। चरणमकसायमुदितं तहमक्खायं जहऽक्खायं // 1284 // तं दुविकप्पं छउमत्थकेवलिविहाणओ पुणेक्केक्कं। खयसमज सजोगाजोगकेवलिविहाणओदुविहं।१२८५। भणियं खओवसमओ अहुणोवसमेणं लहइ जह जीवो / सामइयं तं भण्णइ सो जं च स्वओवसमपुब्बो॥ अहवा खओवसमओ चरणतियं उवसमेण खयओ वा / सुहुमाऽहक्खायाई तेणोवसमक्खया कमसो॥ सेढिगयस्स व सुहुम सेढीओ निग्गयस्सऽहक्खायं / सा ओवसमक्खयओ पढमं तत्थोवसमसेढी 1288 'सामाइयेत्यादि, तत्तोयेत्यादि द्वारगाथा द्वयम् // 65-66 / / 'सन्च'मित्यादि॥ सर्वमेतत्पञ्चविध चारित्रं सामायिक, समभावल| क्षणत्वाविशेषात् , किन्तु छेदादिविशेषत एव भिवं सदर्थतः संज्ञातश्च नानात्वं प्रतिलभते, तवाविशेषितमाद्यम् निर्विशेषगमाचं चारित्रं, यतस्तस्थितमिह-प्रवचने सामान्यचिन्तासंज्ञायां सामायिकमिति / 67 / साम्प्रतं प्रपञ्चमभिदधत् सामायिकमङ्गीकृत्य तावदिद
SR No.600320
Book TitleVisheshavashyak Bhashyam Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinbhadra Gani Kshamashraman
PublisherRushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha
Publication Year1937
Total Pages504
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size40 MB
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