________________ चारित्र विशेषाव० कोव्याचार्य वृत्तौ // 37 // // 374 // 54595%20 सामाइय त्थ पढम छेओवट्ठावणं भवे बीयं / परिहारविसुद्धीयं सुहुमं तह संपरायं च ॥नि, 114 // | तत्तो य अहक्खायं खायं सव्वम्मि जीवलोयम्मि / जंचरिऊण सुविहिया वच्चंतऽयरामरं ठाणं ।नि.११५॥ सव्वमिणं सामइए छेयाइविसेसओ पुणो भिन्नं / अविसेसिय सामइयं ठियमिह सामन्नसन्नाए // 1267 // सावजजोगविरइत्ति तत्थ सामाइयं दुहातं च / इत्तरमावकहं चिय पढमं पढमंतिमजिणाणं // 1268 // तित्थेसुमणारोवियवयस्स सेहस्स थोवकालीयं / सेसाणमावकहियं तित्थेसु विदेहयाणं च // 1269 / / नणु जावज्जीवाए इत्तरियपि गहियं मुयंतस्स / होइ पइण्णालोवो जहाऽऽवकहियं मुयंतस्स // 1270 // नणु भणियं सव्वं चिय सामाइयमिणं विसुद्धिओ भिन्नं / सावजविरहमइयं को वयलोवो विसुद्धीए 1 // 1271 // उन्निक्खमओ भंगो जो पुण तं चिय करेइ सुद्धयरं / सन्नामेत्तविसिढे सुहुमंपिव तस्स को भंगो ? / 1272 / परियायस्स य छेओ जत्थोवट्ठावणं वएसुं च / छेओवट्ठावणमिह तमणइयारेयरं दुविहं // 1273 // सेहस्स निरइयारं तित्यंतरसंकमे न तं होज्जा / मूलगुणघाइणो साइयारमुभयं च ठियकप्पे // 1274 // परिहारेण विसुद्धं सुद्धो व तवो जहिं विसेसेण / तं परिहारविसुद्धं परिहारविसुद्धियं नाम // 1275 // तं विगप्पं निव्विस्समाणनिविट्ठकाइयवसेण / परिहारियाणुपरिहारियस्स कप्पट्ठियस्सविय // 1276 / / परिहारो पुण परिहारियाण सो गिम्हसिसिरवासासु / पत्तेयं तिविगप्पो चउत्थयाई तवो नेओ / / 1277 / / %8455555 % ,