________________ वृत्ती विशेषाव०६३३ आधयोर्द्वयोः पूर्वलन्धे अङ्गीकृत्य भजना-विकल्पना, तथाहि-अनुत्तरोपपातिकः पूर्वप्रतिपन्न आघयोः, नाधः सप्तमनारक सामायिक इति गाथार्थः // 1196 // मूलगाथोक्ततुशब्दार्थमाह-सवें त्यादि / सर्वासां जघन्या स्थितिरस्येति सर्वजघन्यस्थितिः, प्राय आयु- लाभः भकं विहायेत्येव बोद्धव्यं, असावपि न लभते, किं कारणमित्याह-'जेण 'पुवपडिवन्नों येनार्य पूर्वप्रतिपन्न एव भवति, त्रयाणां // 358 // द्र सूक्ष्मसंपरायादित्वात् , पूर्वलब्धसम्यक्त्वादित्रयाः सूक्ष्मसम्परायादय इति पूज्यपादाः, आयुषि का वाःत्याह-आयुर्जघन्यस्थितिस्तू // 358 // भयप्रतिषिद्धः, क्षुल्लकभवाधारत्वादिति गाथार्थः // 1197 // सत्तण्हं पयडीणं अभितरओउ कोडिकोडीए / काऊण सागराणंजइ लहइ चउण्हमेगयरं॥११९८॥ (नि.१०६) / अंतिमकोडाकोडीऍ सब्वकम्माणमाउवजाणं / पलियासंखिजइमे भागे वीणे हवइ गंठी // 1199 // गंठित्ति सुदुन्भेओ कक्खडघणरूढगूढगंठिव्व / जीवस्स कम्मजणिओ घणरागहोसपरिणामो // 1200 / भिन्नम्मि तम्मि लाभो सम्मत्ताईण मोक्खहेऊणं / सो य दुलहो परिस्समचित्तविघायाइविग्घेहिं // 1201 // सो तत्थ परिस्सम्मइ घोरमहासमरनिग्गयाइव्व। विजा य सिद्धिकाले जह बहुविग्यातहा सोवि॥१२०२॥ कम्मढिई सुदीहा स्वविया जइ निग्गुणेण सेसंपि। स खवेउ निग्गुणोचिय किंथ पुणोदसणाईहिं?॥१२०३।। पाएण पुव्वसेवा परिमउई सारणम्मि गुरुतरिया। होइ महाविजाए किरिया पायं सविग्घा य॥१२०४॥ तह कम्मट्ठिइखवणे परिमउई मोक्खसाहणे गुरुई / इह दंसणाइकिरिया दुलहा पायं सविग्या य // 1205 // अहव जओचिय सुबहुं स्ववियं तो निग्गुणोनसेसंपिास खवेइ लहइयजओसम्मत्तसुयाइगुणलाभं॥१२०६॥ ASTRO RAMA