________________ विशेषाव कोव्याचार्य // 340 // SEXCARALARIA रुक्खाइरूवयनिरूवणहमिह दव्वरुक्खदिहतो / जह कोई विउलवणसंडमझयारहियं रम्मं // 1101 // वृक्षरूपक तुंगं विउलक्खधं साइसओ कप्परुक्खमारूढो। पजत्तगहियबहुविहसुसुरभिकुसुमोऽणुकंपाए // 1102 // . कुसुमत्थिभूमिचिट्ठियपुरिसपसारियपडेसु पक्खिवह / गंथति तेऽवि घेत्तुं सेसजणाणुग्गहढाए // 110 // लोगवणसंडमझे चोत्तीसाइसयसंपदोवेओ। तवनियमनाणमइयं स कप्परुक्खं समारूढो // 1104 // 5 // 340 // माहोज नाणगहणम्मिसंसओतेणकेवलिग्गहणं सोऽविचउहातओऽयंसवण्णू अमियनाणित्ति॥११०५॥ पजत्तनाणकुसुमो ताइं छउमत्थभूमिसत्थेसु। नाणकुसुमत्थिगणहरसियबुद्धिपडेसु पक्विवइ // 1106 // कीस कहेइ कयत्थो? किंवा भवियाण चेव बोहत्यं / सव्वोपायविहिण्णू किंवाऽभव्वेन बोहेइ॥११०७॥ नेगतेण कयत्थो जेणोदिन्नं जिणिंदनामं से / तदवझफलं तस्स य खवणोवाओज्यमेव जओ // 1108 // जं व कयत्थस्सवि से अणुवकयपरोवगारिसामव्वं / परमहियदेसियत्तं भासयसाभव्वमिव रविणो॥११०९॥ किंवकमलेसुराओरविणो योहेइ जेण सोताई। कुमुएसु व से दोसोजन विबुझंति से ताई 1 // 1110 // जं बोहमउलणाई सूरकरामरिसओ समाणाओ। कमलकुमुयाण तोतं सामव्वं तस्स तेसिं च // 1111 // जह वोलूगाईणं पगासधम्मोवि सो सदोसेणं / उइओवि तमोरूवो एवमभव्वाण जिणसुरो॥१११२॥ सझं तिगिच्छमाणो रोगं रागीन भण्णए वेजो।मुणमाणोय असझं निसेहयंतो जह अदोसो॥१११।। तह भब्वकम्मरोग नासंतो रागवं न जिणवेनोनय दोसि अभव्वासझकम्मरोगं निसेतो // 1114 //