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________________ बोला कोबाचार्य सूत्रव्याख्यालक्षणं वृत्ती // 31 // **A 5 // 312 // GISIBIOESAKAL युक्तमिति वर्चते,ते चेमे गुणा:-'निहोस'मित्यादि, निर्दोषमुक्तवत् सारव-बहुपर्यायं गोशब्दवत् सामायिकाभिधानवद्वा हेतुयुक्तं उपपत्युपेतं अलङ्कृतं उपमादिभिः उपनीतं उपनयोपसंहृतं सोपचारं अग्राम्याभिधानं मितं-वर्णादिनियतपरिमाणं मधुरं श्रवणहारीति लोकार्थः॥१००१-३॥ तथा-'अप्पक्खरे'त्यादि, असंदिग्धं असंशयं न यथा सैन्धवाभिधानेऽश्वलवणपुटपुरुषाभिधानादिसंशयः 'अल्पाक्षरं सारखच्चोक्तं, अन्यपरिपाट्या चेदमित्यचोय 'विश्वतोमुखं' अनेकमुखं, अनुसूत्रं अनुयोगचतुष्टयाभिधानात् , सारवत्तु-प्रतिमुखमनेकार्थाभिधायकमिति, अपुनरुक्तं, वैहिहकारादयोऽनर्थकाः पदच्छिद्रपूरणायैवोपादीयमानाः स्तोभका इत्युच्यते, स्तोमक:-क्षेपकस्तद्विरहादस्तोभक: अनवद्यं अगर्हमित्यादिलक्षणं इत्यल्पग्रन्थमहार्थमित्यादिग्रहणकगाथार्थः // 1004 // सुत्तेऽणुगए सुद्धेत्ति निच्छिए तह कए पयच्छेए / सुत्तालावयनासे निक्खित्ते सुत्तफासो उ // 1005 // एवं सुत्ताणुगमो सुत्तालावगगओ य निक्खेवो। सुत्तप्फासियनिजुत्ती नया य वचंति समयं तु॥१००६॥ सुत्तं पयं पयत्यो संभवओ विग्गहो वियारो य / दूसियसिद्धी नयमयविसेसओ नेयमणुसुत्तं // 1007 // पयमत्यवायगं जोयगं च तं नामियाइ पंचविहं / कारग-समास-तद्धिय-निरुत्तवचोविय पयत्यो॥१००८॥ परयोहहिओवऽत्यो किरिया-कारगविहाणओवचो। पज्जायवयणओऽविय तह भूयत्थाभिहाणेणं // 1009 // पञ्चक्खओहवा सोऽणुमाणओ लेसओ व सुत्तस्स / वच्चो व जहासंभवमागमओ हेउओ चेव // 1.10 // पायं पयविच्छेओ समासविसओ तयत्थनियमत्यं / पयविग्गहोत्ति भण्णइ सुद्धपए सो न संभवइ // 1011 // . सुत्तगयमत्थविसयं व दूसणं चालणं मयं तस्स / सहत्थण्णायाओ परिहारो पञ्चवत्थाणं // 1012 / / RUSHA***06*96
SR No.600320
Book TitleVisheshavashyak Bhashyam Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinbhadra Gani Kshamashraman
PublisherRushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha
Publication Year1937
Total Pages504
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size40 MB
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