________________ विशेषाव० कोव्याचार्य // 28 // अविसुद्धनयमएण व जइलद्धिसुयमणुवउत्तेविभावसुयं चिय पढओ, किमणुवउत्तस्स दव्वसुयं?॥८८५॥ श्रुतस्य निआगमसुओवओगो सुद्धो चिय न चरणाइसंमिस्सो। मीसेवि वा विवक्खा सुयस्स चरणाइभिन्नस्स।।८८६॥ शेपाः पर्याचरणाइसमेयम्मि उ उवओगो जो सुए तओ समए। नोआगमोत्ति भण्णइ नोसदो मीसभावम्मि // 887 // याश्च. सव्वनिसेहे दोसो सव्वसुयमणागमो पसजेजा। होजा वाऽणागमओ सुयवज्जमणागमसुयं तु // 888 // | // 28 // देसनिसेहे सयलं नोआगमओ सुयं न पावेजा। भिन्नपि व तं देसो चरणाईणं पसज्जेजा // 889 // होज व नोआगमओ सुओवउत्तोऽवि ज स देसम्मि / उवजुवइ न उ सव्वे तेणायं मीसभावम्मि // 890 // आह नणु मीसभावे नाभिहिओ अभिहिओ य नोसहो / देसे तदनभावे दवे किरियाऍ भावे य // 891 // सच्चमयं देसाईसु तहवत्थवसेण सद्दविणिओगो / अमियत्था य निवाया जुज्जइ तो मीसभावेऽवि // 892 // अविसेसियसंमिस्सोवओगदेसुत्ति वा सुयं काउं। नोआगमभावसुए नोसद्दो होज देसेवि // 893 / नोआगमओ कोई सद्दसहायमुवओगमिच्छति / नणु सुतरमागमत्तं हि दबभावागमे जुत्तं // 814 // अह नागमोत्ति सदोनोआगमया य तदहियत्तणओ। आगमओ दव्वसुयं किह सद्दो नागमो जइणो ? / / 895 // अन्ने नोआगमओ सामित्ताणासियं सुयं ति / जइ न सुयमणुवओगे नणु सुयरमणासियं नत्थि / / 896 // सुय-सुत्त-गंथ-सिद्धंत-सासणे आण-वयण उवएसो। पण्णवण आगमोवि य एगट्ठा पज्जया सुत्ते // 897 // 'एवं चियेत्यादि स्पष्टार्था, नवरं 'सुयाणुसारेणं' अनुयोगद्वारानुसारेणेति गाथार्थः॥८७९।। अथ प्रपञ्चतः श्रुतपदमुच्यते-तच्चतुर्धा ॐॐॐॐॐ