________________ कोत्याचा ला विशेषाव० वृत्तौ // 27 // PERS जदवस्सं कायव्वं तेणावस्सयमिदं गुणाणं वा / आवासयमाहारो आ मज्जायाभिविहिवाई // 877 // श्रुतस्य नि| आ वस्सं वा जीवं करेइ जं नाण-दसणगुणाणं / संनिज्झभावणच्छायणेहिं वा वासयं गुणओ // 878 // क्षेपाः पर्या'तस्से'त्यादिना पर्यायत आह गाथाः पञ्च, अत्र च 'आवस्सयं' ति अवश्यंकरणादावश्यकं, किश्च तत् ?, चक्रवालसा. याश्च. माचार्यनुष्ठानं, 'ध्रुवनिग्रहः' अनादिकालीनकर्मापनयनं, एवं च पदानि नव दश वेति, यतश्चाहोरात्रान्तः श्रमणादिना कर्त्तव्यमत 6 // 279 // आवश्यकं, आपाश्रयो वेदं गुणानां, आडो मर्यादाभिविधिवचनत्वादापाश्रयं, ततश्च प्राकृतशैल्या लिङ्गव्यत्ययादावासयंति, गुणानां / | वा वश्यमात्मानं करोतीति, यथाऽन्तं करोतीत्यन्तकः, गुणशून्यं वा आत्मानमावासयति गुणैरिति, गुणसानिध्यमात्मनः करोती| त्यर्थः, गुणैर्वा आवासकम्-अनुरञ्जकं वस्त्रधूपादिवदिति, गुणैर्वाऽऽत्मानमाच्छादयतीति 'वस आच्छादने' इतिकृत्वा // 874-78 / / | तदेवं भेदतत्त्वपर्यायैरावश्यकमुक्त, श्रुतस्कन्धपदयोरप्यतिदेशनं तावदाह एवं चिय सेसाई विउसा सुयलक्खणाणुसारेण / कमसो बत्तब्वाइं तहा सुयरखंधनामाई // 879 // आगमओ दव्वसुयं वत्ता सुत्तोवओगनिरवेक्खो / नोआगमओ जाणयभव्वसरीराइरित्तमिदं // 880 // पत्ताइगयं सुत्तं सुत्तं च जमंडजाइ पंचविहं / आगमओ भावसुयं सुओवउत्तो तओऽणण्णो // 881 // नोआगमओ भावे लोइय लोउत्तरं पुराभिहियं / सम्मत्तपरिग्गहियं सम्मसुयं मिच्छमियरंति // 882 // आगमओ भावसुर्य जुत्तं नोआगमे कहं होइ / जइ नागमो न सुत्तं, जइ सुत्तमणागमो किह णु ? // 883 // उवओगो जम्मत्ते तं तं जइ वाऽगमोऽवसेसं तु / नोआगमोत्ति एवं किमणुवउत्तम्मि दव्वसुर्य ? |884.. CAROLORCARE E ASES