________________ विशेषाव कोव्याचार्य वृत्ती आवश्यकस्यनामादयः // 272 // // 272 / / FREERASAIRSIOSEX आगमओऽणुवउत्सोवत्ता दव्वंति सिद्धमावासं। किंसिक्खियाइसुयगुणविसेसणे फलमिहऽभहियं // 86 // जह सव्वदोसरहियंपि निगदओ सुत्तमणुवउत्तस्स / दव्वसुयं दव्वावासयं च तह सव्वकिरियाओ॥८६२॥ उवउत्तस्स उ खलियाइयंपि सुद्धस्स भावओ सुत्तं / साहइ तह किरियाओसव्वाओ निजरफलाओ॥८६॥ अहिए कुणालकविणो हीणे विज्जाहराइ दिटुंता / बालाउरातिभोयणभेसज्जविवज्जआ उभए // 86 // चंदगुत्तपपुत्तो उ, बिंदुसारस्स ननुओ। असोगसिरिणो पुत्तो, अन्धो जायइ कागणिं // 86 // . जो जहा वट्टए कालो, तं तहा सेव वानरा!। मा वंजुल परिभट्ठो, वानरा ! पडणं सर // 866 // विजाहर रायगिहे उप्पय पडणं च हीणदोसेण / कहणोसरणागमणं पयाणुसारिस्स दाणं च // 867 // चित्तकडुभेसजाई मा ण पीलेज, ऊणए देइ / पउणइ न तेहिं अहियेहिं मरइ बालो तहाहारे // 868 // अत्यस्स विसंवाओ पयभेआओ तओ चरणभेओ / तत्तो मोक्खाभावो मोक्खाभावेऽफला दिक्खा // 869 // नोआगमओ जाणयभव्वसरीराइरित्तमावासं / लोइयलोगुत्तरियं कुप्पावयणं जहा सुत्ते // 870 // लोउत्तरे अभिक्खणमासेवालोयओ उदाहरणं / स रयणदाहगवाणियनाएण जईहवालद्धो // 871 // आगमओ भावावासयं तदत्थोवओगपरिणामो / नोआगमओ भावे परिणामो जाण किरियासु // 872 / / लोइयलोउत्तरियं कुप्पावयणं च तं समासेणं / लोउत्तरं पसत्यं सत्थे तेणाहिगारोज्यं / / 873 // 'आवस्सए' त्यादि, 'कज्जो' इत्यादि, शास्त्रनाम आवश्यकश्रुतस्कन्धस्तभेदाश्चाध्ययनानि 'तम्हा आवस्सयं निक्खिवि-|