________________ 5 विशेषाव कोट्याचार्य वृत्ती आवश्यकस्यनामा // 27 // // 27 // 454545% ग्रहार्थम् , 'उदितम्' उक्तं ज्ञानपञ्चकन्याख्यानं प्रपञ्चतः, नतु नियमोऽयं तद्व्याख्याने, अपित्वभिधानमात्रस्यैव नियमो, मङ्गलार्थत्वात् , अथवा इदमन्यत् परिहारान्तरम्-अपवादोऽयमिह नन्दीकथनेन कथ्यते, कथमित्याह-कदाचित् पुरुषाद्यपेक्षया अन्यारम्भेऽन्यदप्युत्क्रमेणाभिधीयते समस्तदध्युपयोगवदित्यतोऽष्टौ पृच्छा इति गाथार्थः॥ 849 // अत्र च आवस्सयसुयक्खंधो नाम सत्थस्स तस्स जे भेया / ताई अज्झयणाइं नासो आवस्सयाईणं // 850 // कज्जो पिहप्पिहाणं जहत्थमजहत्थमत्थसुण्णंति / नामे चेव परिच्छा गज्झं जइ होहिइ जहत्थं // 851 // नामाईओ नासो चउविहो मंगलस्स व स नेओ। विण्णेओ य विसेसो सुत्तगओ किंचि वुच्छामि // 852 // आगमओ दव्वावासयं तमावासयं पयं जस्स / सिक्खियमिच्चाइ तयं तयणुवउत्तो निगदमाणो / / 853 // सिक्खियमंतं नीयं हिययम्मि ठियं जियं दुयं एइ / संखियवण्णाइ मियं परिजियमेन्तुक्कमेणंपि // 854 // जह सिक्खियं सनामं तह तंपि तहाठियाइ नामसमं / गुरुभणियघोससरिसंगहियमुदत्तादओ ते य॥८५५॥ नवि हीणक्खरमहियक्खरं च वोचत्य रयणमालव्व / वाइद्धक्खरमेयं वच्चासियवण्णविण्णासं // 856 // नखलियमुवलहलंपिव अमिलियमसरूवधण्णमेलोव्व वोचत्थगंथमहवा अमिलियपयवक्कविच्छेयं // 857 // नय विविहसत्थपल्लवविमिस्समट्ठाणछिन्नगहियं वा / विच्चामेलिय कोलियपायसमिव भेरिकंथ व्व // 858 // मत्ताइनिययमाणं पडिपुण्णं छंदसाहवऽत्थेणं / नाकंखाइसदोसं पुण्णमुदत्ताइघोसेहिं // 859 // कंठोहविप्पमुक्कं नवत्तं बालमूयभणियं व / गुरुवायणोवयातं न चोरियं पोत्थियाओ वा // 860 //