________________ विशेषाव कोट्याचार्य केवलज्ञान // 266 // // 266 // ACCASSAGA अथ केवलमुच्यतेअह सव्वदव्वपरिणामभावविन्नतिकारणमणंतं / सासयमप्पडिवाई एगविहं केवलन्नाणं // 826 नि.७७॥ मणपज्जवनाणाओ केवलमुद्देससुद्धिलाभेहिं / पुव्वमणंतरमभिहियमहसद्दोऽयं तयथम्मि // 827 // सव्वद्दव्वाण पओगवीससामीससा जहाजोग्गं / परिणामा पज्जाया जम्मविणासादी सब्वे // 828 // तेसिं भावो सत्ता सलक्खणं वा विसेसओ तस्स | नाणं विण्णत्तीए कारणं केवलण्णाणं // 829 // किं बहुणा ! सव्वं सब्वओ सया सव्वभावओ नेयं / सव्वावरणाईयं केवलमेगं पयासेइ // 830 // पज्जायओ अणंतं सासयमिदं च सदोवओगाओ। अव्वयओऽपडिवाई एगविहं सव्वसुद्धीए // 831 // केवलनाणेणऽत्थे नाउं जे तत्थ पन्नवणजोग्गे। ते भासइ तित्थयरो वइजोग सुयं हवइ सेसं॥८३२॥नि.७८॥ नाऊण केवलेणं भासइ न सुएण जं सुयाईओ। पण्णवणिज्जे भासइ नाणभिलप्पे सुयाईए // 833 // तत्थवि जोग्गे भासइ नाजोग्गे गाहयाणुवित्तीए। भणिए व जम्मि सेसं सयमूहइ भणइ तम्मत्तं // 834 // वइजोगोतं न सुयं खओवसमियं सुअंतआ न तओ। विन्नाणं से खइयं सद्दो उण दब्बसुयमित्तं // 835 / / | सेसं छउमत्थाणं विनाणं जं सुयाणुसारेणं / तं भावसुयं भण्णइ खओवसमिओवओगाओ // 836 // भण्णंतं वा न सुयं सेसं कालं सुयं सुणेताणं / तं चेव सुयं भण्णइ कारणकज्जोवयारेण // 437 // NAGARCANCY