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________________ मनःपर्यायज्ञानम् वृत्ती // 263 // विशेषाव० तं संजयस्स सव्वप्पमायरहियस्स विविहरिद्धिमओ।समयक्खेत्तम्भितर सण्णिमणोगयपरिणाणं / / 815 // कोट्याचार्य मुणइ मणोदव्वाई नरलोए सो मणिजमाणाई। काले भूयभविस्से पलियासंखिजभागम्मि // 816 // दव्वमणोपज्जाए जाणइ पासइ य तग्गएऽणंते / तेणावभासिए उण जाणइ यज्झेऽणुमाणेणं // 817 // // 263 // सो य किर अचक्खुईसणेण पासइ जहा सुयन्नाणी / जुत्तं सुए परोक्खे पञ्चक्खे न उ मणोनाणे // 818 // जइ जुज्जए परोक्खे पञ्चक्खे नणु विसेसओ घडइ / नाणं जइ पञ्चक्खं न दसणं तस्स को दोसो ? // 819 // 4 अन्नेऽवहिंदसणओ वयंति न य तस्स तं सुए भणियं / न य मणपज्ज वदंसणमन्नं च चउप्पयाराओ॥८२०॥ अहवा मणपज्जवदसणस्स मयमोहिदंसणं सण्णा | बिन्भंगदंसणस्स व नणु भणियमिदं सुयाईयं // 822 // जेण मणोनाणविओदो तिण्णि व दंसणाइं भणियाई। जइ ओहिंदसणं होज होज नियमेण तोतिण्णि ||822 / / अन्ने उ मणोनाणी जाणइ पासइय जोऽवहिसमग्गो। इयरोयजाणइच्चिय संभवमेत्तं सुएऽभिहियं // 823 / / अन्ने जं सागारं तो तं नाणं न दंसणं तम्मि / जम्हा पुण पञ्चक्खं पेच्छइ तो तेण तन्नाणी // 824 // भण्णइ पण्णवणाए मणपज्जवनाणपासणा भणिया / तो एव पासए सो संदेहो हेउणा केण ? // 825 // 'मण'इत्यादि / मनःपर्यायज्ञान-प्राग्निरूपितशब्दार्थम् , पुनःशब्दो विशेषणार्थः, इदं हि रूपिद्रव्यनिवन्धनक्षायोपशमिकप्रत्यक्षादिहै सामान्येऽपि सत्यवधिज्ञानात् स्वाम्यादिमेदेन विशिष्टमित्यर्थमेदेनेति, स्वरूपमस्याह-जनमनःपरिचिन्तितार्थप्रकटनं, मानुषक्षेत्रम्-अर्ध तृतीयद्वीपसमुद्रपरिमाणं तन्निवद्वं 'गुणप्रत्ययम्'असाधारणक्षान्त्यादिगुणप्रभवम् , इदं च चारित्रवत एव स्याद् , एतदुक्तं भवति-आम
SR No.600320
Book TitleVisheshavashyak Bhashyam Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinbhadra Gani Kshamashraman
PublisherRushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha
Publication Year1937
Total Pages504
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size40 MB
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