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________________ Ro विशेषाव० कोव्वाचार्य वृत्तौ द्रव्यक्षेत्रादिषुवृद्धिहानी // 24 // // 243 // ECREASEX सागरोपमा 33 कालओ 66 एतावलमाणोऽयं कथमेकं समयं स्यादित्यर्थः, एतदुक्तं भवति-नरतिरश्चोरयं युक्तः प्रतिपादित उपयोगतोऽविरुद्धत्वात् नत्वनयोरिति, उक्तवदिति गाथार्थः / / 728-29 // उच्यते, नैतदेवं, सिद्धान्ताभिप्रायापरिज्ञानात् , तथाहि-'चरिमेत्यादि, इह सामान्ये देवादेर्भवचरिमत्वेन साटसमये यदस्य विभंग तत्सम्यक्त्वं लभमानस्यावधिज्ञानं भवति ततः-मयस्स चुतस्स महस्स वा से इह वितियसमये भ्रश्यतीति ॥द्वारम् // 730 // अथ चलद्वारम्-चलतीति चला-पुरः प्रसर्पति तीव्रत्वाद्धीरवीरपुरुषवदितस्त्र विपर्यय इत्यत आह| वुड्डी वा हाणी वा चउव्विहा होइ खेत्तकालाणं / दव्वेसु होइ दुविहा छव्विह पुण पज्जवे होइ॥नि.५९ वही वा हाणी वाऽणंतासंखिज्जसंखभागाणं / संखिज्जासंखिजाणंतगुणा चेति छन्भेया // 732 // पइसमयमसंखिजहभागहियं कोइ संखभागहियं / अन्नो संखेजगुणं खित्तमसंखिजगुणमण्णो // 73 // पेच्छइ विवड्डमाणं हायंतं वा तहेव कालंपि / नाणंतवुडिहाणी पेच्छइ जं दोऽवि नाणंते // 734 // दब्वमणतंसहियं अनन्तगुणवड्डियं च पेच्छेज्जा / हायंतं वा भावम्मि छव्विहा वुडिहाणीओ // 73 // बुडीए चिय वुडी हाणी हाणीए न उ विवज्जासो। भागे भागो गुणणे गुणो य दवाइसंजोए // 73 // किह खेत्तअसंखभागाइ संभवे संभवो न दब्वेवि ? / किह वा दव्वाणंते पज्जवसंखिजभागाइं 1 // 737 // खेत्ताणुवत्तिणो पोग्गला गुणा पोग्गलाणुवत्ती य ।सामण्णा विण्णेया न उ ओहिन्नाणविसयम्मि॥७३८॥ दन्वाइं सखेत्ताओऽणंतगुणा पनवा सदवाओ। निययाहाराहीणा तेसिं वुड्डी यहाणी य // 739 // CAPASATORIAUSIAI 24
SR No.600320
Book TitleVisheshavashyak Bhashyam Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinbhadra Gani Kshamashraman
PublisherRushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha
Publication Year1937
Total Pages504
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size40 MB
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