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________________ विशेषाव० कोट्याचार्य अवध्यवस्थान // 24 // // 24 // तत्थेव गुणा सतह थोवोवआगचिट्ठइ लद्धीस POLISASIERSIONS खित्तस्स अवट्ठाणं तेत्तीसं सागरा उकालेणं / दव्वे भिन्नमुहुत्तो पजवलंभे य सत्त? ॥७२०॥नि. // 57 // | अद्धाएँ अवट्ठाणं छावट्ठी सागरा उ कालेणं / उक्कोसगं तु एवं एक्को समओ जहन्नेणं ॥७२१॥नि. // 58 // आहारे उवओगे लद्धीए वा हविज्जऽवत्थाणं / आहारो से खित्तं तेत्तीसं सागरा तत्थ // 722 // विजयाईसृववाए जत्थोगाढो भवक्खओ जाव / खेत्तेऽवचिट्ठइ तहिं दव्वेसु य देहसयणेसु // 723 // दव्वे भिन्नमुहत्तं तत्थऽण्णत्थ व हविज खेत्तम्मि / उवओगो न उ परओ सामत्थाभावओ तस्स // 724 // दव्वे तत्थेव गुणा संचरओ सत्त वष्ट वा समया / अण्णे पुण अट्ठ गुणे भणंति तप्पज्जवे सत्त // 72 // जह जह सुहुमं वत्थु तह तह थोवोवओगया होइ / दव्व-गुण-पज्जवेसुं तह पत्तेयंपि नायव्वं // 726 // तत्थऽणत्थ य खित्ते दब्वे गुण-पज्जवो-वओगे य / चिट्ठइ लद्धीसा पुण नाणावरणक्खयोवसमो // 727 / / सो सागरोवमाइं छावहिं होज साइरेगाई / विजयाइसु दो वारे गयस्स नरजम्मणा समयं // 728 // सव्वजहण्णो समओ दव्वाइसु होइ सव्वजीवाणं / स पुण सुरनारगाणं हविज किह खेत्तकालेसु?॥७२९॥ चरिमसमयम्मि सम्म पडिवज्जंतस्स जं चिय विभंगं / तं होइ ओहिनाणं गयस्स बीयम्मि तं पडइ // 730 // 'खेत्तस्सेत्यादि / 'क्षेत्रस्य' पञ्चानुत्तरविमानलक्षणस्य सम्बन्धि 'अवस्थानम् अविचलभावेनासनं, क्षेत्रभवनमित्यभिप्रायः, कियन्तं कालं यावदवधेर्भवतीत्याह-त्रयस्त्रिंशदेव सागरोपमाणि भवन्ति 'कालेनेति कालमाश्रित्य, उपयोगतस्तु कियन्तं कालमि CONCENTORICALCOHORIE%%
SR No.600320
Book TitleVisheshavashyak Bhashyam Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinbhadra Gani Kshamashraman
PublisherRushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha
Publication Year1937
Total Pages504
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size40 MB
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