________________ परमावधे विशेषाव० कोव्याचार्य न वृत्ती व्यतो. विषयः // 23 // // 23 // ROSCARE जओ कम्मदव्वेहिंतो लाणि 'तम्ह'त्ति तस्मात् 'त्थे'त्यत्र थोवं खेत्तं असंखेज्जदीवसमुद्दा कालोऽपि पल्योपमअसंखभागो' अतआइ-'थोवतरा खेत्तकाला' इति, कर्मद्रव्यविषये त्ववधौ अनन्तरातीतमूलगाथायां लोकपल्योपमयोः पृथक् पृथक् संख्येया भागा उक्ताः 'संखेज्जकम्मदव्वेति वचनादिति गाथार्थः // 677 // ननु च जघन्यावधिप्रमेयमभिदधता गुरुलध्वगुरुलघु वा पश्यति, न सर्वमेवेत्युक्तम् , एवमङ्गुलासंख्यादिविमध्यमावधेरपि नियत एव विषयस्तत्रस्थागंचिदेव दर्शनादित्युक्तं, तत्किमुत्कृष्टावधेरप्येतावन्मात्रमेव सामर्थ्यमुतान्यद् , अत्रोच्यतेएगपएसोगाढं परमोही लहइ कम्मगसरीरं। लहइय अगुरुयलहुयं तेयसरीरे भवपुहुत्तं // 678 // (नि. 44) एगपएसोगाढं पेच्छइ पेच्छइ य कम्मयतऍपि / अगुरुलहुदव्वाणि य चसद्दओ गुरुलहूइंति // 679 // तेयसरीरं पासं पासइ सो भवपुहुत्तमेगभवे / णेगेसु बहुतरए सरिज न उ पासए सव्वे // 680 / / एगपएसोगाढे भणिए किं कम्मयं पुणो भणियं ? / एगपएसोगाढे दिट्टे का कम्मए चिंता // 681 // अगुरुलहुगहणंपि य एगपएसावगाहओ सिद्धं / सव्वं वा सिद्धमिजो रूवगयं लहइ सव्वंति // 682 // एगोगादे भणिए संसओ सेसए जहाऽऽरंभे / सण्हयरं पिच्छंतो थूलयरं न मुणइ घडाइं // 683 // जह वा मणोविओ नत्थि दंसणं सेसए तिथूलेवि / एगोगाढे गहिए तह सेसे संसंओ होजा // 684 // इय नाणविसयवइचित्तसंभवे संसयावणोयत्थं / भणिएज्वेगोगाढे केइ विसेसे पयंसंति // 685 / / एगोगाढग्गहणेऽणुगादओ कम्मयंति जा सव्वं / तदुवरि अगुरुलहूइं चसद्दओ गुरुलहूइंपि // 686 // CORSAGERSALISASI