________________ विशेषाव कोव्वाचार्य वृत्तौ गुरुलध्यादिचर्चा // 227|| // 227 // अगुरुलघुनि भाषादीनि पश्यति, यस्तु न विशुद्धयते स तेष्वेव कियन्तमपि कालमास्ते पतति चेति गाथार्थः // 658 // तथा 'अगुरु इत्यादि।भाषाद्रव्यारब्ध ऊर्ध्वमेव वर्धते क्रमेण, नाधः, आधस्त्येष्वस्य का वाःत्याह-कश्चिदितराण्यपि पश्यति, वर्धमानः सन् पटुत्वा|दिति गाथार्थः // 659 // ___गुरुलहुमगुरुलहुं वा तेयाभासंतरेति निद्दिडं / ओरालाईयाणं किं गुरुलहुमगुरुलहुयं वा ? // 66 // || ओरालियवेउब्वियआहारगतेय गुरुलहू दव्वा। कम्मगमणभासाई एयाइं अगुरुलहुयाइं॥६६१॥(नि. 41)| गुरुयं लहयं उभयं नोभयमिति वावहारियनयस्स / दव्वं लेट्टुं दीवो वाऊ वोमं जहासंखं // 16 // निच्छयओ सब्वगुरुं सब्बलहुं वा न विजए दव्वं / बायरमिह गुरुलहुयं अगुरुलहं सेसयं सव्वं // 663 / / जइ गुरुयं लहुयं वा न सव्वहा दब्वमत्थि तो कीस / उड्डमहोवि य गमणं जीवाणं पोग्गलाणं च ? // 664 // उड्डु लहुकम्माणं भणियं गुरुकम्मणामहो गमणं / जीवा य पोग्गलाविय उड्डाहोगामिणो पायं // 665 // अन्नच्चिय गुरुलहुया अन्नो दव्वाण वीरियपरिणामो। अन्नो गइपरिणामो नावस्सं गुरुलहनिमित्तो॥६६६॥ परमलतणमणूणं जं गमणमहोवि तत्थ को हेऊ ? / उ8 धूमाईणं थूलयराणंपि किं कज्जं? // 667 // किं च विमाणाईणं नाहोगमणं महागुरूणंपि / तणुयरदेहो देवो हक्खुवइ व किं महासेलं ? // 668 // अह तस्स वीरियं तं तो नाहोगमणकारणं गुरुया / उड्डगइकारणं वा लहुया एगंतओ जुत्ता // 669 // विरियं गुरुलहुयाणं जहाहियं गइविवजयं कुणइ / तह गइठिइपरिणामो गुरुलहुयाओ विलघेइ // 670 //