________________ Cruise विशेषाव कोट्याचार्य वृत्तों रूपं // 222 // // 222 // तत्तो संखाईया संखाईयप्पएसमाणाणं / गंतुमसंखेजाओ जोग्गाओ कम्मुणो भणिया॥६५१॥ तत्तो संखाईया तस्सेव पुणो हवंति जोग्गाओ। माणसदव्वाईणवि एवं तिविगप्पमेक्केक्कं // 652 // एगा समयठिईणं संखेजा संखसम यठिइयाणं / होति असंखेजाओ तओ असंखेजसमयाणं // 653 // एगा एगगुणाणं एगुत्तरखुड्डिया तओ कमसो / संखेनगुणाण तओ संखेज्जा वग्गणा होंति // 654 // संखाईयगुणाणं संखाईया य वग्गणा तत्तो / होंति अणंतगुणाणं दव्वाणं वग्गणाऽणता // 655 // वण्णरसगंधफासाण होंति वीसं समासभेएणं / गुरुलहुअगुरुलहूणं बायरसुहुमाण दो वग्गा // 656 // भणियं तेयभासाविमझदव्वावगाहपरिमाणं / ओहिन्नाणारंभो परिणिट्ठाणं च तं जेसुं॥६५७॥ गुरुलहुदवारद्धो गुरुलहुदवाई पिच्छिउं पच्छा / इयराई कोइ पेच्छइ विसुज्झमाणो कमेणेव // 658 // अगुरुलहुसमारद्धो उड्डे वड्डइ कमेण सो नाहो / बढतो चिय कोई पेच्छइ इयराइं सयराहं // 659 // 'तेया' इत्यादि / तैजसंच भाषा च तैजसभाषे तयोर्द्रव्याणि२ तेषां तैजसभाषाद्रव्याणामन्तरात्-अन्तरे 'अर्थाद्विभक्तिपरिणतिः' | अथवा सप्तम्यैव पाठः, 'एत्थति अत्रान्यदेव तदयोग्यं द्रव्यं 'लभते' पश्यति, कः ? इत्याह 'पहवओत्ति अवधिज्ञानप्रारम्भकः| अवधिज्ञानप्रतिपत्ता, किंविशिष्टं तदित्याह-गुरुलहु अगुरुलहुय'न्ति, अस्यार्थः-गुरु च लघु च गुरुलघु न गुरुलघु अगुरुलहु, एत. दुक्तं भवति-गुरुलघुपर्यायोपेतं वा अगुरुलध्विति, इह च तैजसद्रव्यासन्नं गुरुलघु भाषाद्रव्यासनमगुरुलध्विति, तदपि चावधिज्ञानंतदावरणोदयात् भ्रस्यत् सत्तेनैव द्रव्येणोपलब्धेन सता निष्ठां याति-प्रतिपतति, अपिशब्देन ज्ञापयति-प्रतिप्रातिन्ययं न्यायो, न SOAMROSAROOG