________________ विशेषाव 4 अवघेरुत्कृष्ट कोव्याचार्य। वृत्तौ // 212 // तृतीयसमये तु योग्योऽतखिसमयाहाखहणमिति गाथार्थः॥५९८॥ कई त्यादि // एवं स्थिते केचन सूक्ष्मधियो व्याचक्षते-द्वौ झप. समयावायामविष्कम्भसंहारकरणलक्षणौ गृह्येते, तृतीयः पनकत्वोपपाते सूचि संहरत इति सामर्थ्याद् गम्यते, अथैवं सति त्रिसामयिकत्वं लभ्यते यदुक्तं नियुक्तिकारेण, आहारकश्चाविग्रहेणोत्सादात् , 'सुहुमो याचि प्रत्युतातिसूक्ष्मतरः पनकच परभवोत्पत्तेः।५०९। तथा च-'उववाए' इत्यादि, उपपात एवं उपपातसमय एवासौ यतो 'जघन्यों जघन्यावगाहनो, न 'शेषसमयेषु द्वितीयादिषु ईषन्महचाव, ततः किल तदेहसमानमेवावधिक्षेत्रं जघन्यमिति, एतच्च न सत्यमेव सूक्ष्मधीवचनं, त्रिसमयाहारकत्वस्य पनकजीवविशेषणत्वाभ्युपगमात्, मत्स्यायामविष्कम्भसंहरणसमयदयस्य च पनकसमयत्वायोगात् , त्रिसमयाहारकत्वाख्यविशेषणानुपपचिप्रसङ्गादिति गाथार्थः // 600 // अथोत्कृष्टमाहसव्वबहुअगणिजीवा निरंतरंजत्तियं भरिज्जंसु / खेत्तं सव्वदिसागं परमोही खेत्तनिहिट्ठो // 601 // (नि.३१) अब्बाघाए सव्वासु कम्मभूमीसुजं तदारंभा / सव्वबहवो मणुस्सा होंतजियजिणिंदकालम्मि // 602 // उक्कोसया य सुहुमा जया तया सव्वबहुगमगणीणं / परिमाणं संभवओ तं छद्धा पूरणं कुणइ // 603 // एक्केक्कागासपएसजीवरयणाए सावगाहे य / चउरंसघणं पयरं सेढी छट्ठो सुयाएसो॥ 604 // घणपयरसेदिगणियं नणुतुल्लंचिय, विगप्पणा कीस। छद्धा कीरइ, भण्णा पुरिसपरिक्खेवओभेओ।।६०५॥ निययावगाहणागणिजीवसरीरावली समंतेणं। भामिज्जइ ओहिनाणिदेहपज्जंतओ सा य // 606 //