________________ विशेषाव कोव्याचार्य अवधेघन्यक्षेत्र // 21 // // 21 // जावइया तिसमयाहारगस्स सुहुमस्स पणगजीवस्स / ओगाहणा जहण्णा ओहीखेत्तं जहण्णं तु॥५९१ // जो जोयणसाहस्सो मच्छो नियए सरीरदेसम्मि / उववज्जतो पढमे समए संविवह आयाम // 592 // पयरमसंखिज्जंगुलभागतणुं मच्छदेहविच्छिणं / बीए, तइए सूई संखिविडं होइ तो पणओ // 593 // उववायाओ तइए समए जे देहमाणमेयस्स / जण्णेयदव्वभायणमोहिक्खित्तं जहन्नं तं // 594 // किंमच्छोऽतिमहल्लोकिं तिसमयओवर कीस वासुहुमो गहिओकीस व पणओ किंव जहण्णावगाहणओ॥ मच्छो महल्लकाओ संवित्तो जो य तीहि समएहिं / सो किर पयत्तविसेसेण सहमोगाहणं कुणइ // 596 सण्हयरा सण्हयरो सुहुमो पणओ जहण्णदेहो य। सुबहुविसेसविसिट्ठो सण्हयरो सव्वदेहेसु // 597 // पडमबिइएतिसण्हो जमइत्यूलो चउत्थयाईसु / तइयसमयम्मि जोग्गो गहिओ तो तिसमयाहारो // 598 // केई दो शससमया तहओ पणगत्तणोववायम्मि / अह तिसमओ आहारओ य सुहुमो य पणओ य 599 / उववाए चेव तओ जो जहण्णो न सेससमयेसु / तो किर तदेहसमाण-मोहिखित्तं जहण्णं तु // 600 // .. 'ओहिस्से' त्यादि स्पष्टार्था // 590 // 'जावइया' इत्यादि / 'यावती' यावत्प्रमाणा त्रीन् समयानाहारयतीति त्रिसमयाहारकस्तस्य, सूक्ष्मनामकर्मोदयात्सूक्ष्मस्तस्य, पनकश्चासौ जीवश्च पनकजीवः, वनस्पतिविशेष इत्यर्थः, तस्य, अवगाहन्ति यस्यां प्राणिनः साऽवगाहना, तनुरित्यर्थः, 'जघन्या' सर्वस्तोका अवधेः क्षेत्रं अवधिक्षेत्रं 'जघन्यं सर्वस्तोकं सर्वजघन्यं, तुशब्द एवकारार्थः स चावधारणे, तस्य चैवं प्रयोगः-अवधिक्षेत्रं जघन्यमेतावदेवेति // 591 // अत्र साम्प्रदायिकमर्थ भाष्यकार उद्भावयन्नाह-'जो' इत्यादि।