________________ कोट्याचार्य वृत्ती अवधिज्ञान प्रकृतयः // 205 // // 205 // RRR पारगमनं चास्य स्यात् , सप्तमके तु परिनिष्ठा, गुरुवदनुभाषणादिति गाथार्थः // 568 // साम्प्रतं व्याख्याकरणविधिमाह-'सुत्तत्यो इत्यादि / सूत्रस्यार्थः सूत्रार्थः, सूत्रार्थ एव केवलो व्याख्यायते यत्रानुयोगे स सूत्रार्थः-सूत्रार्थमात्रप्रतिपादनपरः सूत्रार्थः, खल्वित्यवधारणे, एवंभूत एवाद्योऽनुयोगः कर्त्तव्य इति, द्वितीयस्तु नियुक्तिमिश्रकः कर्त्तव्य इति भणितोर्हदादिभिः, तृतीयस्तु निरवशेषोयथाशक्त्या नैगमादिनयजालप्रपञ्चतः कार्यो,व्युत्पन्नत्वात् शिष्याणां, एष च त्रिधा प्राक्तनसप्तकाविरोधेनेति // 569 // समाप्तं श्रुतज्ञानम् / अथ प्रत्यक्षे आय प्रत्यक्षमभिधित्सुराह-'भणिय' मित्यादि / उक्तं परोक्षम्, अथ प्रत्यक्षं, तच्च त्रिधा अवध्यादि, तत्र प्रागुक्तप्रस्तावमादितोऽवधि वक्ष्ये इति गाथार्थः // 570 // तत्रसंखाईयाओ खलु ओहीनाणस्स सव्वपयडीओ।काई भवपञ्चइया खओवसमियाओ काओऽवि // 571 // कत्तो मे वण्णेउं सत्ती ओहिस्स सव्वपयडीओ ? / चउद्दसविहनिक्खेवं इड्डीपत्ते य वोच्छामि (नि.२४-२५) तस्स जमुकोसयखेत्तकालसमयप्पएसपरिमाणं / तण्णेयपरिच्छिन्नं तं चिय से पयडिपरिमाणं // 573 // संखाईयमणतं च तेणमणंतपयडिपरिमाणं / पेच्छइ पोग्गलकार्य जमणंतपएसपज्जायं // 574 // भवपच्चइया नारयसुराण पक्खीण वा नभोगमणं / गुणपरिणामनिमित्ता सेसाण खओवसमियाओ॥५७५॥ ओही खओवसमिए भावे भणिओभवोतहोदइए। तोकिह भवपच्चइओ बोत्तुं जुत्तोऽवही दोण्हं? // 576 // सोविहु खओवसमओकिंतु स एव क्खओवसमलाभो।तम्मिसइ होअवस्संभण्णइ भवपचओतोसो॥५७७॥ SLUCHOSASSASSA