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________________ वृत्ती विशेषाव दपि प्ररूपयन्नाह–'जहे' त्यादि प्राग्वत् // 556-59 // उत्तरगाथासम्बन्धमाह बुद्धिगुणाकोट्याचार्य सव्वाइसयनिहाणं तं पाएणं जओ पराहीणं / तेण विणेयहियत्थं गहणोवाओ इमो तस्स // 560 // टकं अनुयो आगमसत्थग्गहणं जं बुद्धिगुणेहिं अट्ठहिं दिटुं / बेति सुयनाणलंभं तं पुव्वविसारया धीरा (नि० 21)| गभेदाः सासिज्जड जेण तयं सत्थं तं चाविसेसिय नाणं / आगम एव य सत्थं आगमसत्थं तु सुयनाणं // 562 // // 203 // // 203 // तस्सायाणं गहणं दिढं जं मइगुणेहिं सत्थम्मि / बेति तयं सुयलाभं गुणा य सुस्सूसणाईया // 563 // सुस्सूसइ पडिपुच्छइ सुणेइ गिण्हइ य ईहए वावि। तत्तो अपोहए वा धारेइ करेइ वा सम्म (नि०२२) सुस्सुसई उ सोउं सुयमिच्छइ सविणओ गुरुमुहाओ। पडिपुच्छइ तं गहियं पुणोऽवि नीसंकियं कुणइ॥५६॥ | सुणइ तदत्थमहीउं गहणेहाऽवायधारणा तस्स ।.सम्म कुणइ सुयाणं अन्नंपि तओ सुयं लहइ // 566 // . सुस्सूसइ वा जं जं गुरवो जपंति पुब्वभणिओ य / कुणइ पडिपुच्छिऊणं सुणेइ सुत्तं तदत्थं वा // 567 / / मूयं हुंकारं वा बाढक्कार पडिपुच्छ वीमंसा / तत्तो पसंगपारायणं च परिणि? सत्तमए ॥५६८॥(नि०२३) . सुत्तत्थो खलु पढमोबीओ निज्जुत्तिमीसओ भणिओ। तइओय निरवसेसो एस विही होइ अणुओगे (नि.२४) भणियं परोक्खमहुणा पच्चक्खं तं च तिविहमोहाइं। पुव्वोइयसंबंधं तत्थावहिमाइओ वोच्छं // 570 // _ 'सब्वें'त्यादि,स्पष्टार्था // 56 // 'आगम गाहा / आगमनं-आगमः, आडोऽभिविधिमर्यादार्थत्वात् अभिविधिना मर्यादया वा AAORSEEN ESS
SR No.600320
Book TitleVisheshavashyak Bhashyam Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinbhadra Gani Kshamashraman
PublisherRushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha
Publication Year1937
Total Pages504
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size40 MB
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