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________________ श्रते साद्यन्तादिमेदाः // 197 // विशेषाव० वेऽपि प्रबन्धत उपकार्योपकारकभावः त्रिकाष्ठिकाया इवाविरुद्धः, न चेत्यमितरेतराश्रयो दोषः, एवं गुणत्वेन दृष्टत्वादिति गाथार्थः॥ कोट्याचार्य | // 539 // साम्पतं चतुर्थपञ्चमद्वारे सप्रतिपक्षे युगपदभिदधदाहवृत्ती अच्छित्तिनयस्सेयं अणाइपज्जंतमत्थिकाय व्व / इयरस्स साइसंतं गइपज्जाएहिं जीवो व्व // 540 // दव्वाइणा व साइयमणाइयं संतमंतरहियं वा / दवम्मि एगपुरिसं पडुच्च साइं सनिहणं च // 24 // // 197 // चोदसपुवी मणुओ देवत्ते तं न संभरइ सव्वं / देसम्मि होइ भयणा सट्ठाणभवेऽवि भयणा उ / / 542 // मिच्छभवंतरकेवलगेलनपमायमाइणा नासो। आह किमत्थं नासइ ? किं जीवाओ तयं भिण्णं? // 543 // जह भिन्न तन्मावेवि तो तओ तस्सभावरहिओत्ति / अण्णाणिच्चिय निच अंधव्व समं पईवेण // 544 // तं ता नियमा जीवो जीवो न तदेव केवलं जम्हा / तं च तदण्णाणं वा केवलनाणं व सो होजा // 545 // तं जह जीवो नासे तण्णासो होउ सव्वसो नत्थि। जं सो उपायब्बयधुवधम्माऽणंतपज्जाओ॥५४६।। सव्वं चिय पइसमयं उप्पजइ नासए य निच्चं च / एवं चेव य सुहदुक्खबंधमोक्खाइसम्भावो // 547 // अहवा सुत्तं निब्याणभाविणोऽणाइयं सपज्जतं / जीवत्तं पिव निययं सेसाणमणाइपज्जंतं // 548 // खेत्ते भरहेरवया काले उ समाउ दोण्णि तत्थेव | भावे पुण पण्णवगं पण्णवणिजे व आसज्ज / / 549 // उवओगसरपयत्ता थाणविसेसा य होंति पण्णवए / गइठाणभेयसंघायवण्णसहाइभावेसु // 550 // दव्वे नाणापुरिसे खेत्ति विदेहाई कालि जो तेसु / खयउवसमभावम्मि य सुयमाणं वद्दए सययं // 551 // ACROSSASSACASSESASS
SR No.600320
Book TitleVisheshavashyak Bhashyam Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinbhadra Gani Kshamashraman
PublisherRushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha
Publication Year1937
Total Pages504
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size40 MB
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