________________ विशेषाव कोव्याचार्य वृत्तौ // 138 // -वक्तुर्भेर्यादेर्वा भाषा तया मिश्रितं शृणोति / पश्चादधं व्याचिख्यासुराह-'तहव्वेत्यादि भावितार्थम् // 353 // ननु तानि कि-1 ग्रहणनिस| मित्यत आह–'अणु' इत्यादि, तेषामनुश्रेणिगमनात् , अनुश्रेणिगमनेऽपि कस्यचित् स्खलनतोऽपि विश्रोतोगमनं भवतीत्यत आह- योर्योगौ का प्रतिघाताभावाद् असम्भवात् , स किमित्यत आह-निमित्ताभावात् सूक्ष्मत्वात् अपि च समयान्तरानवस्थानाच, किमत आह-'मुक्काई / निरन्तरता वक्त्रा न शृणोति 'विदिसत्थोति गाथार्थः॥३५४॥ भाषाधिकारस्य प्रस्तुतत्वादाह-केन पुनर्योगेनामीषां वाग्द्रव्याणामादानमुत्सर्ग च करोति ? कथं चेत्यत आह नियुक्तिकार:गिण्हइ य काइएणं निसिरइ तह वाइएण जोएणं / एगंतरं च गिण्हइ निसिरइ एगंतरंचेव // 355 // (नि. 7) | // 138 // गिहिज्ज काइएणं किह निसिरइ वाइएण जोएणंको वायं वाजोगो कि वाया कायसंरंभो ? // 356 // वाया न जीवजोगो पोग्गलपरिणामओरसाइ व्व। न य ताए निसिरिजइस चियनिसिरिजए जम्हा / / 357 / / अह सो तणुसंरंभो निसिरह तो काइएण वत्तव्वं / तणुजोगविसेसच्चिय मणवइजोगत्ति जमदोसो॥३५८॥ किं पुण तणुसंरंभेण जेण मुंचइस वाइओ जोगो। मण्णइ यस माणसिओतणुजोगो चेव य विभत्तो॥३५९॥ तणुजोगो चिय मणवइजोगा कारण दव्वगहणाओ। आणापाणव्व न चे तओऽवि जोगंतरं होजा॥३६०॥ तुल्ले तणुजोगत्ते कीस व जोगंतरं तओ न कओ? / मणवइजोगा व कया ? भण्णइ ववहारसिद्धत्थं // 361 // कायकिरियाइरितं नाणापाणप्फलं जह वईए / दीसइ मणसो य फुडं तणुजोगभंतरो तो सो॥३६२॥ अहवा तणुजोगाहिअवइदव्वसमूहजीववावारो। सो वइजोगो भण्णइ वाया निसिरिजए तेणं // 363 // SUCCE5%AROR