________________ विशेषाव कोव्याचार्य वृत्ती अवग्रहसंशययोनिता सम्यग्दृष्टि| मिथ्याहटयोर्ज्ञाना // 123 // शाने वत्थुस्स देसगमगत्तभावओ परमयप्पमाणं व / किह वत्युदेसविण्णाणहेयवो मुणसुतं वोच्छं // 315 // इह वत्थुमत्थवयणाइपजयाणंतसत्तिसंपन्नं / तस्सेगदेसविच्छेयकारिणो संसयाईया // 31 // अह चेन्न सव्वधम्मावभासया तो न नाणमिह ते। नणु निन्नओऽवि तद्देसमेत्तगाहित्ति अन्नाणं॥॥३१७॥ जइ एवं तेण मुहं अन्नाणी कोवि नत्थि संसारी / मिच्छविट्ठीणं ते अन्नाणं नाणमियरेसिं॥१८॥ सदसदविसेसणाओ भवहेउजहिच्छिओवलम्भाओ। नाणफलाभावाओ मिच्छद्दिहिस्स अण्णाणं // 319 // एग जाणं सव्वं जाणइ सव्वं च जाणमेगंति / इय सब्वमयं सव्वं सम्मदिहिस्स जं वत्थु // 320 // जे संसयादिगम्मा धम्मा वत्थुस्स तेवि पज्जाया। तदहिगमत्तणओ ते नाणं चिय संसयाईया // 32 // पज्जायमासयंतो एक्कंपि तओ पओयणवसाओ। तत्तियपज्जायं चिय तं गिण्हइ भावओ वत्थु // 322 // निण्णयकालेऽवि जओ न तहारूवं विदन्ति ते वत्थु / मिच्छट्टिी तम्हा सव्वं चिय तेसिमण्णाणं // 323 // कट्ठयरं वन्नाणं विवजओ चेव मिच्छद्दिट्ठीणं / मिच्छाभिणिवेसाओ सव्वत्थ घडे व्व पडबुद्धी // 324 // अहवा जहिंदनाणोवओगओ तम्मयत्तणं होइ / तह संसयाइभावे नाणं नाणोवओगाओ॥३२॥ तुल्लमियं मिच्छस्सवि सोसम्मत्ताइभावसुन्नोत्ति। उवयोगम्मिावि तो तस्स निच्चमन्नाणपरिणामो॥३२६॥ जं निन्नओवओगेऽवि तस्स विवरीअवत्थुपडिवत्ती। तो संसयाइकाले कत्तो नाणोवओगो से 1 // 327 // अहवा जह सुयनाणावसरे सामण्णदेसणं भणियं / तह मइनाणावसरे सव्वमइनिरुवणं कुणति // 328 // // 123 // ORRES SAA%25A5%