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________________ प्रतिक्रमणा ध्ययने ॥५५॥ वारणायांविषविकल: | जथा पासादो तथा संजमो, जथा वाणिगिणी तथा साधू, जो तं सीदावेति उवेक्खति वा सो तथा अणाभागी भवति, एवं सारेति अवराधे पायच्छित वहति संठवति य, तेण चारितं निम्मलं भवतित्ति । - परिहरणावि छव्विहा तहेव, तत्थ दुद्धकायउदाहरण-एगो कुलपुत्तओ,तस्स दो भगिणीओ अण्णेसु गामेसु, इमस्स धीता जाता, भगिणीण पुत्ता जाता, संवड्डिताणि, दोवि भगिणीओ समं चेव वरियाओ आगताओ, सो भणति-दोण्ह अच्छाण कतरं पितं , वच्चह, पुत्ते पेसेह, जो खेयण्णो तस्स देमित्ति, गताओ, पेसविता, दोण्हवि समा घडगा दिण्णा, जाह गोउलाओ दुद आणेधत्ति, गता, दुद्धस्स घडगा भरिता, काउडीहिं सम, उच्चलिता, तत्थ दोणि पंथा, एगो परिहारो, सो समो, बितिओ उज्जुओ खाणुविसमबहुलो, एगो उज्जुतेण पत्थितो, सो अक्खडितो, भिण्णा दोवि घडगा, एगो अनेण भमित्ता आगतो, सो भणति,मए भणित-दुद्धं आणेहित्ति,न मए भणिय-लहुं वा चिरेण वा एहत्ति, सो धाडितो, इतरस्स दिण्णा । एष दृष्टांतः। एवं चेव उवर्सहारो भावे होति, जथा सो कुलपुत्तओ तथा तित्थकरो, जथा सा दारिया तथा सिद्धी, जथा ते दारगा तथा साधू , जथा दुघडगा तथा चरितं, जथा पंथा तथा दबखेत्तकालभावा विसमा य समा य, एवं परिहरितव्वाणि कुत्सिताणि ठाणाणि, दवं खेत्तं कालो भावो य। वारणावि छब्बिहा तहेव, तत्थ विसभोयणविकल उदाहरणं-एगो य राया अण्णस्स रायाणगस्स णगररोहओ जाति, तेण रायाणएण पाणियाणि विसेण भाविताणि, सत्थो य आवासावितो, विसकयं अण्णपाणं अवरागतं जाणिचा णासहत्ति इतरेण पीसावित-जो एत्थ पाणितं पियति फलाणि वा खाति सो मरतित्ति, अण्णाउकंठिता उ विरसपाणियाओ अरसाबिरसाणि य समRAISIST ॥५५॥
SR No.600291
Book TitleAavashyak Sutram Uttar Bhag
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami, Jindasgani Mahattar
Author
PublisherRushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
Publication Year1929
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size7 MB
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