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________________ आवश्यकविधि: कालग्रहणं प्रतिक्रमणाला | गुरू सामाइयं करेत्ता वोसिरामित्ति भणित्ता ठिता उस्सग्गं ताहे पुवट्ठिता देवसियातियारं चिंतेंति, अण्णे भणंति- ताहे गुरू ध्ययने सामाइयं करेंति ताहे पुवट्ठियावि तं सामाइयं करेंति, सेसं कंठं। जो होज्ज०॥ १४६४॥ परिसंतो प्राघूर्णकादि, सोपि सज्झा॥२३०॥ यझाणपरो अच्छति, जाहे गुरू ठंति ताहे तेऽवि बालादिया ठंति। एतेण विधिणा- आवासं०॥१४६५।। जिणेहिं गणधराणं उवदिटुं, ततो परंपरएण जाव अम्हं गुरूवदेसेण आगतं तं कातुं आवस्सगं अण्णे तिण्णि थुतीओ करेंति, अहवा एगा एगसिलोइया बितिया बिसिलोइया तइया तिसिलोइया, तेसिं समत्तीए कालवेलपडिलहणविधी इमा कातव्वा, अच्छतु ताव विही, इमो काल| भेदो ताव बुच्चति दुविधो० ॥ १४६९ ।। पुव्वद्धं कंठं, जा अतिरित्तवसही बहुकप्पडिगसेविया य सा घंघसाला, ताए णितअतिताणं घट्टणपडणादि वाघातदोसो सङ्ककहणेण य वेलातिक्कमदोसो एवमादि । वाघाते०॥ १४७० ।। तम्मि वाघातिमे दोणि जे कालपडियरगा ते णिग्गच्छति, तेसिं ततिओ उवज्झायादि दिज्जति, ते कालग्गाहिणो आपुच्छणं संदिसावणं कालपवेदणं च सव्वं तस्सेव करेंति, एत्थ गंडगदिद्रुतो न संभवति, इतरे उवउत्ता चिटुंति, सुद्धे काले तस्सेव उवज्झायस्स प्रवेदिति, ताहे डंडधरगो बाहिं कालपडियरगो चिट्ठति, इतरे दुयगादिवि अंतो पविसंति, ताहे उवज्झायस्स समीवे सब्वे जुगवं पडवेंति, पच्छा एगो णीति, दंडधरो अतीति, तेण पट्टविते सज्झायं करेति, 'निव्वाघाते' पच्छद्धं, अस्यार्थ:- आपुच्छण०॥ १४६८॥ निव्वाघाते दोण्णि जणा गुरुं पुच्छंति-कालं घेच्छामो?, गुरुणा अब्मणुण्णाता कितिकमंति बंदणं कातुं डंडगं घेत्तुं उबउचा आवस्सितमासज्ज करेंता पमज्जंता य गच्छंति, अंतो जदि पक्खुडंति पडंति वा वत्थादि वा विलग्गति कितिकम्मादि किंचि वितई करेंति तो कालवाघातो, RECESSASARGESARKAKAASA PRASA5555 ॥२३॥
SR No.600291
Book TitleAavashyak Sutram Uttar Bhag
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami, Jindasgani Mahattar
Author
PublisherRushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
Publication Year1929
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size7 MB
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